sanskrit paragraph on vanyajantu sanrakshan
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You're the best part of my day
Heart is open, it's open
Something's pulling you to me
Like an ocean, we're flowing
Explanation:स, नई दिल्ली : \Bअंतरराष्ट्रीय प्राकृत\B समावेश संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत और प्राकृत भाषाओं और प्राच्य विद्याओं की धरोहर के विकास के लिए उन पर शोध किया जाना जरूरी है। इससे उनका संरक्षण होता है और उन्हें समझने में भी नई पीढ़ी को आसानी रहती है। यह सेमिनार मैसूर यूनिवर्सिटी एवं कन्नड विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।
स, नई दिल्ली : \Bअंतरराष्ट्रीय प्राकृत\B समावेश संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत और प्राकृत भाषाओं और प्राच्य विद्याओं की धरोहर के विकास के लिए उन पर शोध किया जाना जरूरी है। इससे उनका संरक्षण होता है और उन्हें समझने में भी नई पीढ़ी को आसानी रहती है। यह सेमिनार मैसूर यूनिवर्सिटी एवं कन्नड विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्रवणबेलगोल के भट्टारक स्वस्ति श्री चारुकिर्ती महास्वामी ने कहा कि रिसर्च हमारी शैक्षणिक प्रतिभा को उभारने का सुंदर अवसर भी है। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक परिदृश्य में भौतिक संसाधनों एवं प्रायोगिक विषयों पर अधिक बल दिया जा रहा है, लेकिन प्राच्य विधाओं का संरक्षण केवल रिसर्च के बल पर ही संभव है। शोध से धरोहर का संरक्षण हो पाता है।
स, नई दिल्ली : \Bअंतरराष्ट्रीय प्राकृत\B समावेश संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत और प्राकृत भाषाओं और प्राच्य विद्याओं की धरोहर के विकास के लिए उन पर शोध किया जाना जरूरी है। इससे उनका संरक्षण होता है और उन्हें समझने में भी नई पीढ़ी को आसानी रहती है। यह सेमिनार मैसूर यूनिवर्सिटी एवं कन्नड विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्रवणबेलगोल के भट्टारक स्वस्ति श्री चारुकिर्ती महास्वामी ने कहा कि रिसर्च हमारी शैक्षणिक प्रतिभा को उभारने का सुंदर अवसर भी है। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक परिदृश्य में भौतिक संसाधनों एवं प्रायोगिक विषयों पर अधिक बल दिया जा रहा है, लेकिन प्राच्य विधाओं का संरक्षण केवल रिसर्च के बल पर ही संभव है। शोध से धरोहर का संरक्षण हो पाता है।जगद्गुरु श्री शिवरात्री देशीकेंद्रा महास्वामी ने कहा कि संस्कृत पांडुलिपियों का संरक्षण जरूरी है। आज के दौर में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत और पाली विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा है। संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत के व्याकरण ने विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षण किया है। इसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कंप्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है, लेकिन इस भाषा को वे कभी भी कंप्यूटर की भाषा नहीं बनने देंगे।
स, नई दिल्ली : \Bअंतरराष्ट्रीय प्राकृत\B समावेश संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत और प्राकृत भाषाओं और प्राच्य विद्याओं की धरोहर के विकास के लिए उन पर शोध किया जाना जरूरी है। इससे उनका संरक्षण होता है और उन्हें समझने में भी नई पीढ़ी को आसानी रहती है। यह सेमिनार मैसूर यूनिवर्सिटी एवं कन्नड विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्रवणबेलगोल के भट्टारक स्वस्ति श्री चारुकिर्ती महास्वामी ने कहा कि रिसर्च हमारी शैक्षणिक प्रतिभा को उभारने का सुंदर अवसर भी है। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक परिदृश्य में भौतिक संसाधनों एवं प्रायोगिक विषयों पर अधिक बल दिया जा रहा है, लेकिन प्राच्य विधाओं का संरक्षण केवल रिसर्च के बल पर ही संभव है। शोध से धरोहर का संरक्षण हो पाता है।जगद्गुरु श्री शिवरात्री देशीकेंद्रा महास्वामी ने कहा कि संस्कृत पांडुलिपियों का संरक्षण जरूरी है। आज के दौर में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत और पाली विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा है। संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत के व्याकरण ने विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षण किया है। इसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कंप्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है, लेकिन इस भाषा को वे कभी भी कंप्यूटर की भाषा नहीं बनने देंगे।सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए मैसूर विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रोफेसर जी हेमंत कुमार ने षटखंडागम पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि षट्खण्डागम दिगंबर जैन संप्रदाय का सर्वोच्च और सबसे प्राचीन पवित्र धर्मग्रंथ है। दिगंबर परंपरा के अनुसार मूल धर्मवैधानिक शास्त्र महावीर भगवान के निर्वाण के कुछ शताब्दियों के बाद ही लुप्त हो गए थे। अतः, षट्खण्डागम को आगम का दर्जा दिया गया है और इसे सबसे श्रद्धेय माना गया है। इसके अलावा सेमिनार में कन्नड विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. एस. सी. रमेश, प्रो. रमाकांत शुक्ल, डॉ हम्पा नागराजाह, प्रो. अशोक कुमार,प्रो. फूलचंद प्रेमी, प्रेम सुमन जैन, पोलैंड की काटे क्राघ, डॉ. जयकुमार उपाध्याय एवं स्वराज जैन सहित अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे।