sanskritik vaishvikaran ke sakaratmak or nakaratmak prabhav
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सकारात्मक प्रभाव:
- प्रतिस्पर्धा के माध्यम से गुणवत्ता का बेहतर होना: वैश्वीकरण ने प्रतिस्पर्धा और सहयोग का सृजन किया है जो भारत में शिक्षा परिदृश्य के सकारात्मक पुनरुद्धार के लिए आवश्यक है। इसने विभिन्न स्तरों पर ज्ञान और कौशल के वैश्विक साझाकरण को भी बढ़ावा दिया है।
- चयन की व्यापकता: छात्र और संकाय सदस्य अब भारत में ही ग्लोबल डिस्टेंस लर्निंग नेटवर्क (GDLN), MOOCs, फैकल्टी एक्सचेंज एग्रीमेंट आदि जैसी पहलों के माध्यम से अपनी पसंद की शैक्षिक प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार विश्व के सर्वोत्तम अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है।
- देशों और क्षेत्रों में सांस्कृतिक विविधता के प्रति स्वीकृति को बढ़ावा दिया और स्थानीय संस्कृति को समृद्ध बनाया है।
नकारात्मक प्रभाव:
- सांस्कृतिक साम्राज्यवाद तथा समृद्ध स्वदेशी संस्कृति जो सांस्कृतिक एकरूपता को प्रोत्साहित करती हैं से छुटकारा पाना।
- पश्चिमी शिक्षा मॉडल का गौरवगान करना और स्थानीय ज्ञान को कम आंकना।
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा और योग्यतम की उत्तरजीविता के विचार के कारण शिक्षा प्रणाली पर दबाव बढ़ा है।
- सामाजिक बहिष्करण: अंग्रेजी भाषा को वरीयता, वाणिज्यीकरण, निजीकरण और प्रतिस्पर्धी स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रवेश पर प्रतिबंध, ICTs को शामिल करने के कारण सामाजिक बहिष्कार में वृद्धि हुई हैं तथा स्थानीय आवश्यकताओं को कम आंका गया है।
- अन्य मुद्दों में सामाजिक लोकाचार से ज्ञान का अलगाव, शिक्षा के उद्देश्य का दुर्बल तथा महत्वहीन होना, शिक्षा का विखंडन और श्रेणीक्रम तथा स्कूल प्रणालियों का पदानुक्रम शामिल है।
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