sant Kabir daas ji ki kavita hindi
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कबीर तुम कहां हो ?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है
तुमने कहा --
'जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल '
पर अब नर ही नर को खात है, बुरा धरती का हाल !
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'मन के मतै न चालिए '
पर - अब, मन के मतै ही चालिए, स्वाहा सब कर डालिए !
कबीर तुम कहां हो ?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'तू-तू करता तू भया, मुझ में रही न हूं '
पर अब - तू तू मैं मैं हो रही, हर मन में बसी है 'हूं',
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'राम नाम निज पाया सारा, अविरथ झूठा सकल संसारा',
पर अब-राम नाम तो झूठा सारा, सुंदर, मीठा लगे संसारा,
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने ठीक ही कहा था --
'झीनी झीनी बीनी चदरिया, ओढ़ के मैली कीन्ही चदरिया'
आज हुआ बुरा हाल यूं उसका, मैल से कटती जाए चदरिया !
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है।
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कबीर दास जी के द्धारा कहे गए दोहे इस प्रकार हैं।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
इस दोहे से कबीर दास जी का कहने का अर्थ है कि जो लोग कोशिश करते हैं, वे लोग कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
कबीर दास जी के कहे गए उपदेश वाकई प्रेरणा दायक हैं इसके साथ ही कबीर दास ने अपने उपदेशों को समस्त मानव जाति को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी इसके साथ ही अपने उपदेशों के द्धारा समाज में फैली बुराइयों का कड़ा विरोध जताया और आदर्श समाज की स्थापन पर बल दिया इसके साथ ही कबीर दास जी के उपदेश हर किसी के मन में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं
जाति जुलाहा नाम कबीरा
जाति जुलाहा नाम कबीराबनि बनि फिरो उदासी।
वहीं अगर कबीर पन्थियों की माने तो कबीर दास, काशी में लहरतारा तालाब में एक कमल के फूल के ऊपर उत्पन्न हुए थे।
मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।
आपको बता दें कि कबीरदास जी ने खुद ग्रंथ नहीं लिखे वे उपदेशों को दोहों को मुंह से बोलते थे जिसके बाद उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।
हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये।
कबीरदास जी किसी धर्म को नहीं मानते थे बल्कि वे सभी धर्मों की अच्छे विचारों को आत्मसात करते थे।
यही वजह है कि कबीरदास जी ने हिंदु-मुसलमान का भेदभाव मिटा कर हिंदू-भक्तों और मुसलमान फक़ीरों के साथ सत्संग किया और दोनों धर्मों से अच्छी विचारों को ग्रहण कर लिया।