Sanvariya yuddh tatha Varsha ke Pramukh Devta kaun kaun the
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दिन में अत्यधिक ऊष्मा के कारण धरातल गर्म हो जाता हैं, जिस कारण वायु गर्म होकर फैलती हैं तथा ह्ल्की होने के कारण ऊपर उठती हैं। "शुष्क एडियाबेटिक दर" से प्रति १००० फीट पर वायु का ५.५ डिग्री फा० तापक्रम कम होने लगता हैं, जिस कारण वायु ठंडी होती जाती हैं और उसकी सापेक्षित आर्द्रता बड़नें लगती हैं। अधिक ऊपर जानें से वायु संतप्त हो जाती हैं तथा पुनः ऊपर उठनें पर संघनन प्रारम्भ हो जाता है, जिस कारण संघनन की गुप्त ऊष्मा वायु में मिल जाती हैं, जिससे वायु पुनः ऊपर उठने लगती हैं और अन्ततः उस सीमा को पहुच जाती हैं जहां पर स्थित वायु का तापक्रम इसके बराबर हो जाता हैं। इस अवस्था में संघनन के बाद कपासी वर्षा मेघ का निर्माण हो जाता हैं तथा तीव्र वर्षा प्रारम्भ हो जाती हैं। वर्षा बिजली की चमक तथा बादलों की गरज के साथ होती हैं। इस तरह की वर्षा मुख्य रूप से भूमध्य रेखिय भागों में होती हैं, जहां पर प्रतिदिन दोपहर तक धरातल के गर्म होने के कारण संवाहन धाराएं उठने लगती हैं तथा २.३ बजे के आस-पास तक घनघोर बादल छा जाते हैं। पूर्ण अंधेरा छा जाता हैं तथा क्षणों में ही जोरो की वर्षा होने लगती हैं। ४ बजे के आस-पास वर्षा रुक जाती हैं और आकाश साफ हो जाता हैं।
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