Hindi, asked by saviourgod75, 18 hours ago

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Answered by manishadhiman31
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Answer:

परिवार के दो स्वरूप होते हैं. पहला संयुक्त तथा दूसरा एकल. संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीय समाज का मूल स्वरूप है जो समय के बदलाव के साथ खंडित होकर वर्तमान के एकल परिवारों के रूप में सामने आया हैं.

संयुक्त परिवार के कई सारे लाभ है जिनमें परिवार के सभी सदस्यों की वित्तीय भागीदारी होती हैं तथा जिसका मुखिया परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति को माना जाता हैं.

घरेलू सम्पति पर सभी सदस्यों का समान अधिकार होता हैं. एक ही रसोईघर में सभी का खाना पकता है तथा परिवार का मुखिया ही सभी की जरूरतों को पूरा करता हैं.

आधुनिक परिवारों में जिस तरह बड़ा बेटा शादी के बाद अपने बीबी बच्चों के साथ अलग हो जाता हैं. संयुक्त परिवार में वह विवाह के पश्चात पत्नी के साथ उसी घर में रहता हैं. परिवार में अधिकतर निर्णय बड़े व्यक्ति अर्थात परिवार के मुखिया द्वारा ही लिए जाते हैं.

संयुक्त परिवार में व्यक्ति को कम परेशानियों का समाना करना पड़ता हैं उनमें एक सामूहिक सुरक्षा का भाव रहता है जो उसके विकास में कारगर होता हैं. परिवार में एक अलिखित संविधान अर्थात कानून कायदे होते हैं जिसका पालन सभी को करना पड़ता हैं.

सभी के साथ सहयोग तथा समायोजन के साथ जीवन जीने का असली स्वरूप संयुक्त परिवार में ही देखने को मिलता हैं. बच्चों के लिए यह भरा पूरा परिवार होता हैं.

जिनमें उनके खेलने के लिए साथी तथा पढने के लिए सहपाठी सहजता से मिल जाते हैं. लड़ाई झगड़ा होने पर बड़े उन्हें समझा बुझाने का कार्य करते हैं.

परिवार में कोई बड़ा कार्य शादी आदि की जिम्मेदारी किसी एक की न होकर सभी सदस्यों की होती हैं. तथा परिवार के इस स्वरूप में सभी की जरूरतों का विशेष ख्याल रखा जाता हैं.

बड़ो का सम्मान तथा छोटे से प्यार के गुण संयुक्त परिवार का मूल आधार होता हैं आपसी विश्वास तथा सहयोग से ही इस प्रकार के परिवार चलते हैं.

आधुनिक समय में घर से दूर नौकरी, शहरों की ओर पलायन, अधिक स्वेच्छा तथा स्वतंत्रता से जीवन जीने की तमन्ना के चलते संयुक्त परिवार खत्म होते जा रहे हैं.

शहरों में तो ये पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं जबकि कुछ गाँवों में आज भी ऐसे परम्परागत परिवार रहते है जिनमें 30-50 सदस्य एक साथ मिलजुलकर रहते हैं.

एक तरफ संयुक्त परिवार के कई फायदे है तो इसके कुछ नुक्सान भी हैं. अक्सर परिवार के इस तरह के स्वरूप में कुछ लोग परजीवी बनकर रह जाते हैं.

जो दूसरों की कमाई पर ही अपना जीवन जीना पसंद करते हैं. कई बार बड़े परिवार में अच्छा कार्य करने वाले अथवा बड़े लोगों की यातना सभी को सहनी पड़ती हैं.

आपसी द्वंद्व के चलते माँ बाप अपने बच्चे को अच्छे विद्यालय में स्वेच्छा से दाखिला नहीं दिलवा पाते हैं. परिवार में अधिकतर अहम निर्णय बड़े लोगों द्वारा ही लिए जाते है

जिनमें प्रति सदस्य की सहमति एवं सहभागिता नहीं होती हैं. इन तमाम बातों के बावजूद संयुक्त परिवार कई मायनों में एकल परिवारों से बेहतर हैं.

हमें चाहिए कि हम लुप्त होते परिवार के इस स्वरूप को बचाएं तथा आपसी सहयोग तथा विश्वास के साथ इस प्रकार के परिवार का निर्माण करे जिसमें सभी का सहयोग तथा संतुलन से सफलतापूर्वक जीवन को जिया जा सके.

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