Hindi, asked by priyanshu123467, 7 months ago

सप्रसंग भावार्थ लिखिए -

सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नही जो थी सुनी इंकार ।
एक क्षण के बाद वह कांपी सुधर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म मे फिर ज्यों कहा-
'मैं तोड़ती पत्थर।'​

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Answered by Anonymous
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दी गई पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।

संदर्भ - दी गई पंक्तियां निराला जी की कविता " तोड़ती पत्थर " से ली गई है। इन पंक्तियों में कवि ने आत्मा की मुक्तावस्था या ज्ञान दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या

• कवि का मन संतों की ‘सहज' साधना की मन से ऊँचाइयों की दशा में पहुँचता है। यहाँ वर्णनीयेतन्मयी भावेन योग्यता के उदय के साथ कवि का मन एकलयएकतान हो जाता है।

• फिर कवि ‘सद्य : परिनिवृत्तये' का भावयोग और झंकार सुनता है - ‘सुना मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार। यह झंकार असल में करुणा की डोर से श्रमिक युवती की वेदना के गुंथ जाने की प्रक्रिया से उत्पन्न झंकार है। हृदय की उच्च भावभूमि पर पहुँचना है।

Answered by borabipen
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