सप्रसंग व्याख्या<br />वह पुलकनि वह उठि मिलिन , वह आदर की बात ।<br />वह पठवनि गोपाल की , कछू न जानी जात ॥<br />घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज ।<br />कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज ।<br />हौं आवत नाहीं हुतौ वाही पठयो ठेलि||<br />अब कहिहौं समुझाय के , बहु धन धरौ सकेलि ॥
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sorry I didn't know------------
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