सप्रसंग व्याख्या
निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
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Isme kavi Ishwar se karunda mang raha hai Himmat mang raha hun taki vo har vipda se Khud lad ske, bss dukh ke samnee mujhe sada aashirvaad dena, himmat dena, ladne ki shakti dena
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