सप्रसङ्ग मातृभाषया व्याख्यायेताम्
(क) मन्त्रो विजयमूलं हि राज्ञां भवति राघव!
(ख) कच्चित्ते मन्त्रितो मन्त्रो राष्ट्र न परिधावति!
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सप्रसङ्ग मातृभाषया व्याख्यायेताम् ...
(क) मन्त्रो विजयमूलं हि राज्ञां भवति राघव।
(ख) कच्चित्ते मन्त्रितो मन्त्रो राष्ट्र न परिधावति!
सप्रसंग :
निम्नलिखित श्लोक वाल्मीकि कृत रामायण के अयोध्या कांड के सौंवे सर्ग से संकलित किए गए हैं। यह प्रसंग उस समय का है जब भगवान श्री राम चित्रकूट में बनवास कर रहे हैं और अपने भाई राम के वियोग से पीड़ित भरत श्री राम से मिलने चित्रकूट आए हुए हैं। इसी अवसर पर श्रीराम और भरत के बीच कुशलप्रशासन् संंबंधी प्रश्नोंत्तर होते हैं।
(क)
मन्त्रो विजयमूलं हि राज्ञां भवति राघव।
सुसंवृतो मन्त्रिधुरैरमात्यैः शास्त्रकौविदैः।।
मातृभाषाया भावार्थः
हे रघुनंदन! उत्तम एवं श्रेष्ठ मंत्रणा से ही किसी राजा की नीति संबंधी योजना सफल होती है। यही राजा की सफलता का मूल कारण होता है। यह नीति संबंधी मंत्रणा भी तभी सफल होती है जब कुशल मंत्रीगण उस मंत्रणा को कार्यान्वन होने तक गुप्त रखें।
(ख)
कच्चिमंत्रस्यै नैकः कच्चिन्न बहुभि सह।
कच्चित्ते मन्त्रितो मन्त्रो राष्ट्र न परिधावति।।
मातृभाषाया भावार्थः
हे रघुनंदन! क्या तुम किसी विषय पर अकेले ही विचार-मनन करते हो या बहुत से लोगों के साथ बैठकर मंत्रणा करते हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम जो मंत्रणा करते हो वह पड़ोसी राज्यों तक फैल जाती हो अर्थात वो गुप्त नही रह पाती हो और उसका पता पड़ोसी राज्यों को पता चला जाता हो।
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