Hindi, asked by njhalani1985, 7 months ago

‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों को बच्चों की

पढ़ाई में रुचि क्यों नहीं थी ? पढ़ाई को व्यर्थ समझने में उनके क्या तर्क थे ?​

Answers

Answered by shishir303
39

➲ ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर अगर कहें तो अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि इसलिए नहीं थी क्योंकि लेखक के आसपास के जितने भी परिवार थे, उनमें जो भी बच्चे थे, उनके परिवार में उनके पिता छोटे-मोटे आढ़तिये, परचूनिए (किरानेवाला),  दुकानदार या अन्य कोई छोटा मोटा काम धंधा करने वाले लोग थे। वे लोग अपने बच्चों को अपने व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे इसलिए वह अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते थे।

वे सोचते थे कि बच्चा केवल हिसाब किताब लिखना और बही-खातों के जांचना सीख जाये तो बस इतना ही काफी है। बच्चों को और अधिक पढ़ा कर कोई फायदा नहीं क्योंकि आखिर में उन्हें दुकान पर ही बैठना है या उनका ही काम धंधा संभालना है। इसी कारण अभिभावक बच्चों की कॉपी-किताबों का खर्चा उठाना जरूरी नहीं समझते थे और उनकी अपने बच्चों को पढ़ाने के प्रति रुचि नहीं थी।

◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌

Answered by Bhavinthakkar
2

Answer:

'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर अगर कहें तो अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि इसलिए नहीं थी क्योंकि लेखक के आसपास के जितने भी परिवार थे, उनमें जो भी बच्चे थे, उनके परिवार में उनके पिता छोटे-मोटे आढ़तिये, परचूनिए (किरानेवाला), दुकानदार या अन्य कोई छोटा मोटा काम धंधा करने वाले लोग थे। वे लोग अपने बच्चों को अपने व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे इसलिए वह अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते थे।

वे सोचते थे कि बच्चा केवल हिसाब किताब लिखना और बही-खातों के जांचना सीख जाये तो बस इतना ही काफी है। बच्चों को और अधिक पढ़ा कर कोई फायदा नहीं क्योंकि आखिर में उन्हें दुकान पर ही बैठना है या उनका ही काम धंधा संभालना है। इसी कारण अभिभावक बच्चों की कॉपी-किताबों का खर्चा उठाना जरूरी नहीं समझते थे और उनकी अपने बच्चों को पढ़ाने के प्रति रुचि नहीं थी l

Similar questions