Hindi, asked by kapishkamdi014, 6 months ago

सपनों के-से-दिन’ पाठ के आधार पर लेखक के बचपन की मस्ती का वर्णन कीजिए| ​

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Answered by shishir303
10

‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन की मस्ती के दिन बड़े अनोखे थे। लेखक कहता है कि पूरे साल में केवल वे लोग दो महीने ही पढ़ाई करते थे और बाकी समय मौज मस्ती ही करते थे। पढ़ाई से सबको डर लगता था। लेखक और उसके साथी अक्सर स्कूल जाने में आनाकानी करते थे। लेकिन पीटी सर की स्काउट की कक्षा उनको अच्छी लगती थी क्योंकि उसमें उन्हें खाकी वर्दी पहन कर मैदाने करतब दिखाने का मौका मिलता था। हालाँकि उनके पीटी सर काफी सख्त थे, लेकिन विद्यालय के प्रधानाचार्य नरमदिल के थे।

छुट्टियों में जो भी गृह कार्य मिलता, उस गृह कार्यों को कल पर टालते रहते और सारी छुट्टियां खेलने-कूदने में ही निकाल देते थे। बाद में जब छुट्टियां खत्म होने का समय आता तो जैसे-तैसे या तो गृह कार्य पूरा कर लेते या फिर गृह कार्य पूरा न कर पाने के कारण शिक्षक की पिटाई को एक सस्ता-सौदा समझकर गृह कार्य को यूँ ही छोड़ देते थे।

लेखक छुट्टियों में गाँव में अपनी नानी के घर जाता और वहाँ पर खूब मौज मस्ती करता। लेखक की नानी उसे खूब लाल प्यार दुलार करती और घी-मक्खन-दूध पिलाती। लेखक पूरे गाँव में मौज मस्ती करता, तालाब में नहाता, रेत के टीलों पर लौटता और खेत-खलिहानों में अपने साथियों के साथ भटकता रहता था।

इस तरह ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन के दिन बड़े मस्ती भरे होते थे।

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Answered by jananirajasri709
3

पूरे साल में सिर्फ एक दो महीने ही पढाई होती और लम्बा अवकाश होता | छुट्टियों में वे गृहकार्य न कर पूरी छुट्टियाँ खेलने में निकाल देते और शेष कुछ दिनों में जैसे तैसे पूरा करते | स्कूल न जाने का एक बड़ा कारण था मास्टर से पिटाई का भय | उन्हें अक्सर ही शिक्षकों से मार खाना पड़ता | कुछ शिक्षक ऊँची श्रेणी में भी पढ़ाते| उनके हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा नरम दिल के थे जो बच्चो को सजा देने में यकीन नहीं रखते थे पर उन्हें याद है अपने पीटी सर जो काफी सख्त थे और स्काउट कराते | वो बच्चो की खाल उधेड़ने को सदा तैयार रहते | गुरदयाल जी और उनके साथियों को स्काउट करना बहुत पसंद था | खाकी वर्दी पहने गले में दोरंगे रूमाल लटकाए और नीली पीली झंडियाँ पकड़ कर अभ्यास करना उन्हें उत्साहित करता | ऐसा लगता था मानो एक फ़ौजी हों | मास्टर जी की एक शाबाशी उन्हें एहसास कराती जैसे फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हों| अंग्रेजों के अफ्सर बच्चों को फ़ौज में भर्ती होने को आकर्षित करते पर कुछ ही लड़के थे जो उनके सूट और बूट की लालच में आकर भर्ती होते | मास्टर जी का भारी बूट उन्हें भाता पर घरवाले लाने नहीं देते | इसके बाद भी गुरदयाल सिंह जी और उनके सहपाठी पीटी मास्टर से नफरत करते जिसकी वजह थी उनका उन्हें बुरी तरह पीटना |

जब वे सब चौथी श्रेणी में पढ़ते थे तब पीटी मास्टर उन्हें फ़ारसी पढ़ाते थे जो एक कठिन विषय था | एक शब्दरूप याद करने को उन्हीने दिया था जिसे कुछ ही बच्चे याद कर पाए और तब मास्टर साहब ने सबको मुर्गा बनने को कहा | जब हेडमास्टर शर्मा जी ने यह देखा तो बहुत गुस्सा हुए और उन्हें निलंबित करने को एक आदेश पत्र लिख दिया जिसपे शिक्षा विभाग के डायरेक्टर की मंजूरी आवश्यक थी | उसके बाद पीटी मास्टर कभी स्कूल न आए | गुरदयाल सिंह जी को इतना याद है की सख्त पीटी मास्टर अपने तोतों से मीठी मीठी बातें किया करते थे जो उन्हें हैरान करती थीं |

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