सपने देखना' और 'सपनों में खोए रहना' में क्या अंतर है।
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सपनों का एक अपना संसार है जहां कभी-कभी हमारा अचेतमन मन हमें लेकर चला जाता है। सपनों के संसार की भाषा संकेतिक होती है। इसलिए प्राचीन काल में राजे-महाराजे अपने दरबार में पंडित और स्वप्न विशेषज्ञों को रखते थे जो सपनों के संकेतिक भाषा का अर्थ बताते थे।
‘सपने देखना’ और ‘सपनों में खोए रहना’ में क्या अंतर है?
‘सपने देखना’ और ‘सपने में खोए रहना’ में मुख्य अंतर यह है कि सपना देखना जीवन की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। मनुष्य जब सपने देखता है तो उसे पूरा करने की चेष्टा करता है। हर आदमी कोई ना कोई सपना देखता है। वही सपना उसका उद्देश्य बन जाता है और वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अथक प्रयास करता है। यही जीवन का सार है। बिना सपने देखें कोई अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण नहीं बना पाता।
इसके विपरीत सपनों में खोए रहना एक अलग स्थिति है। सपने में खोए रहने का मतलब है कि आदमी केवल कल्पना में खोया है। वह केवल कल्पना के घोड़े दौड़ा रहा है। वह कर्म करने के लिए प्रेरित नही हो रहा बल्कि सपनों में ही खोया रहता है।
जहाँ सपने देखना कर्म करने के लिए प्रेरित करता है, वही सपने में खोए रहना कर्महीन बना देता है।