Hindi, asked by navycaptain5, 9 months ago

Sapno ke se din mind map

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Answered by Nehavemula
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कहानी सपने के से दिन लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन का एक स्मरण है। वो अपने स्कूल के दिनों को याद करते हैं। वह बहुत संपन्न परिवार से न थे। वह ऐसे गाँव से थे जहाँ कुछ ही लड़के पढाई में रूचि रखते थे। कई बच्चे स्कूल कभी जाते ही नहीं या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते। द्वितीय विश्व युद्ध का जमाना था और उन दिनों चीजें महँगी हुआ करती थी। पढाई की चीजें में जितना दाम लगता उतने में एक सेर घी आ जाता था। वे अपने परिवार के पहले लड़के थे जो स्कूल जाते थे। वे याद करते हैं की सभी विद्यार्थी स्कूल को कैद समझते और पढ़ने में कुछ ही लड़कों को रूचि होती। उन्हें अपना खेल कूद याद आता है कि कैसे सभी बच्चे खेलते समय अक्सर ही चोटिल हो जाया करते और इस पर भी इन्हें अपने अपने घरों में मार पड़ती। स्कूल के अलियार के फूल की सुगंध वो आज भी महसूस करते हैं।

पूरे साल में सिर्फ एक दो महीने ही पढ़ाई होती और लंबी छुट्टियाँ पड़ती थी। छुट्टियों में वे गृहकार्य न कर पूरी छुट्टियाँ खेलने में निकाल देते और शेष कुछ दिनों में जैसे तैसे पूरा करते। स्कूल न जाने का एक बड़ा कारण था मास्टर से पिटाई का भय। उन्हें अक्सर ही शिक्षकों से मार खाना पड़ता। कुछ शिक्षक ऊँची श्रेणी में भी पढ़ाते। उनके हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा नरम दिल के थे जो बच्चो को सजा देने में यकीन नहीं रखते थे पर उन्हें याद है अपने पीटी सर प्रीतमचंद जो काफी सख्त थे और स्काउट कराते। वो बच्चो की खाल उधेड़ने को सदा तैयार रहते। लेखक और उनके साथियों को स्काउट करना बहुत पसंद था। खाकी वर्दी पहने गले में दोरंगे रूमाल लटकाए और नीली पीली झंडियाँ पकड़ कर अभ्यास करना उन्हें उत्साहित करता। ऐसा लगता था मानो एक फ़ौजी हों। मास्टर जी की एक शाबाशी उन्हें एहसास कराती जैसे फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हों। अंग्रेजों के अफ्सर बच्चों को फ़ौज में भर्ती होने को आकर्षित करते पर कुछ ही लड़के थे जो उनके सूट और बूट की लालच में आकर भर्ती होते। मास्टर जी का भारी बूट उन्हें भाता पर घरवाले लाने नहीं देते। इसके बाद भी लेखक और उनके सहपाठी पीटी मास्टर से नफरत करते जिसकी वजह थी उनका उन्हें बुरी तरह पीटना।

जब वे सब चौथी श्रेणी में पढ़ते थे तब पीटी मास्टर उन्हें फ़ारसी पढ़ाते थे जो एक कठिन विषय था। एक शब्दरूप याद करने को उन्हीं ने दिया था जिसे कुछ ही बच्चे याद कर पाए और तब मास्टर साहब ने सबको मुर्गा बनने को कहा। जब हेडमास्टर शर्मा जी ने यह देखा तो बहुत गुस्सा हुए और उन्हें निलंबित करने को एक आदेश पत्र लिख दिया जिसपे शिक्षा विभाग के डायरेक्टर की मंजूरी आवश्यक थी। उसके बाद पीटी मास्टर कभी स्कूल न आए। लेखक को इतना याद है कि सख्त पीटी मास्टर अपने तोतों से मीठी मीठी बातें किया करते थे जो उन्हें हैरान करती थीं।

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