सर्जन की मंगल-बेला में धूमकेतु क्या चाहता
बच्चों की पावन उत्सुकता तौल दो,
देशज मित्रों! भारत की जय बोल दो।
हम अनेकता में भी तो हैं एक ही
हर झगड़े में जीता सदा विवेक ही,
D-G
कृति, आकृति, संस्कृति भाषा के वास्ते,
बने हुए हैं मिलते-जुलते रास्ते,
आस्थाओं की टकराहट से लाभ क्या ?
मंजिल को हम देंगे भला जवाब क्या?
हम टूटे तो टूटेगा यह देश भी,
मैला वैचारिक परिवेश भी,
सर्जन-रत हो आजादी के दिन जियो,
श्रमकर्ताओ, रचनाकारों, साथियों।
शांति और संस्कृति की जो बहती-स्वाधीन जाह्नवी मगा
कोई रोके, बलिदानी रंग घोल दो,
रक्त चरित्रों! भारत की जय बोल दो।
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