सर लाखए-(Arswer the following questions) )
(क) अन्याय और अनीति के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बने लोग किस लक्ष्य को लेकर पल
Answers
Answer:
शाहजहांपुर: सुख और दुख जीवन के दो पहलू है जो कि व्यक्ति की आत्म संतुष्टि पर निर्भर करता है। हमारा लक्ष्य क्या हो इसका निर्धारण बचपन से ही होना चाहिए। इसके अभाव में व्यक्ति दिशाहीन नाव की तरह हो जाता है। हर माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वह अपने बच्चे को सही रास्ता दिखाये और उसके लक्ष्य को निर्धारण करने में उसकी सहायता करें। जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। बिना संघर्ष के इस जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता है। संघर्ष के बाद जब हमें लक्ष्य की प्राप्ति होती है। उस सुख की कल्पना मात्र से मन खुश हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। सफलता तथा असफलता दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति एक या उससे अधिक बार असफल हो सकता है लेकिन हर बार नहीं। यदि लक्ष्य सामने हो तो निश्चित ही सफलता उसके कदम चूमेगी। इस लिए एक बार असफल होने पर हमें घबराना नहीं चाहिए बल्कि लगातार परिश्रम करते रहना चाहिए। यदि आप सच्चे मन अपना कर्म ईमानदारी से करते रहे तो उसका अच्छा फल अवश्य मिलता है। इस लिए फल की चिंता किये बिना कर्म करते रहना चाहिए। लक्ष्य की प्राप्ति तो हो ही जाएगी। आज के संदर्भ में परिवार, समाज तथा देश की बहुत सी अपेक्षाएं हमसे है। हमे सबसे पहले अपने परिवार की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। फिर अपने समाज की और उसके बाद अपने देश की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। इस लिए अपने लक्ष्य को प्रारंभ से निर्धारित कर लेना चाहिए और उसी के अनुसार परिश्रम करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। विद्यार्थियों का लक्ष्य निर्धारित करने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। बच्चे की रुचि उसकी योग्यता तथा उसके काम करने की क्षमता आदि को ध्यान में रखकर बच्चे को अपने लक्ष्य का निर्धारण करने के लिए प्रेरित करें। हर माता-पिता को यह अपेक्षा होती है कि उसका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने परंतु यह हमेशा संभव नहीं होता। क्योंकि हर बच्चा आगे चलकर डॉक्टर या इंजीनियर नही बन सकता है। जीवन में सफलता पाने के लिए अथवा जीविकोपार्जन के लिए अनेक रास्ते है। उनमें से सही मार्ग को चुनकर लक्ष्य निर्धारित करना यही माता-पिता तथा शिक्षकों का कर्तव्य होना चाहिए। बच्चों को सही मार्ग दिखाना तथा उसके बारे में उपयुक्त जानकारी देना हम शिक्षकों का महान कर्तव्य है। अपने विद्यालय की प्रधानाचार्या होने के नाते मैने भी अपने कुछ लक्ष्य निर्धारित किये है। मैं अपने बच्चों को एक सच्चा, नेकदिल एवं ईमानदार व्यक्ति तथा देश का एक जिम्मेदार एवं जागरूक व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करना। पढ़ लिखकर अच्छे अंक लाना या किसी भी तरीके से जीविकोपार्जन के लिए अपने को तैयार करना मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। मै अपने बच्चों को उनकी योग्यतानुसार लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित करती हूं। उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सही मार्ग का चुनाव करना तथा पूरी ईमानदारी से उस मार्ग पर चले यह सुनिश्चित करना मेरा कर्तव्य है। पढ़ने लिखने का तात्पर्य है विनम्रता तथा सभी को सम्मान देना। अपने माता-पिता की सेवा तथा अपने शिक्षकों एवं बड़ों का सम्मान करना प्रत्येक व्यक्ति का समान लक्ष्य होना चाहिए। हमारा विद्यालय निरंतर अपने जिले में ही नहीं बल्कि देश में विद्यालय का नाम रोशन करें यहीं मेरे जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य है और यही मुझे अपने बच्चों से अपेक्षा है।
शशि गुप्ता, प्रधानाचार्या, ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल शाहजहांपुर ।