सर निकोलस विंटन की तुलना आप किससे करना चाहेंगे और क्यों?
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कई लोग नहीं जानते कि 1938 में निकोलस विंटन ने 669 बच्चों को चेकोस्लोवाकिया में हिटलर के बंदी शिविरों में पहुंचाए जाने से बचाया था। उन्होंने अकेले ही इन बच्चों को ट्रेन से ब्रिटेन भेजने का इंतजाम किया और फिर ऐसे परिवारों की तलाश की, जिनके साथ ये बच्चे रह सकें। बचाए गए बच्चों में से अधिकांश ब्रिटेन में रहते हैं और आज इनके वंशजों की संख्या बढ़कर 5000 से अधिक हो चुकी है। विंटन ने अपने इस नेक काम के बारे में 50 साल तक किसी को कुछ नहीं बताया। एक दिन इत्तेफाक से उनकी प|ी को अटारी पर कुछ नोट्स, पत्र और दस्तावेज मिल गए। प|ी ने विंटन के काम की पूरी कहानी सार्वजनिक की। उनके काम की सराहना में उन्हें एमबीई, नाइटहुड की उपाधि और अक्टूबर 2014 में ऑर्डर ऑफ व्हाइट लॉयन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। तब विंटन 105 साल के थे। लोग ऐसे व्यक्ति को बहुत आदर देते हैं और उन्हें प्रेम करते हैं, जो दूसरों की जान बचाते हैं। भले ही किसी व्यक्ति ने एक ही अच्छा काम क्यों न किया हो या अपनी बहादुरी से किसी घटना को होने से रोक लिया हो अथवा अपना जीवन किसी ऐसे ही काम में मदद करने में लगा दिया हो। ऐसे निस्वार्थ कार्यों की तारीफ होती है, जो सही भी है।
अब अप्रैल 2016 में आ जाते हैं। मयूर कामथ ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिन्होंने असाधारण करुणा व इंसानियत दिखाई और घुटनों तक कीचड़ और मलबे में कई घंटे खड़े रहकर कई जिंदगियां बचाईं। वह भी कुछ ऐसी प्रजातियों की, जिनसे शायद ही किसी सामान्य आदमी को कोई फर्क पड़ता हो। इस महीने के शुरू में मयूर महाराष्ट्र में मुंबई के नजदीक वसई स्थित एक प्राचीन मंदिर में गए थे। वहां उन्होंने देखा कि तेज गर्मी के कारण 100 साल पुराना तालाब सूखता जा रहा है। मयूर के भीतर मौजूद प्रकृतिवादी ने खतरे की घंटी सुन ली कि पानी में रहने वाले कई जंतुओं का जीवन सूखते कीचड़ के साथ समाप्त होता जा रहा है। मंदिर प्रशासन से बात की तो पता चला कि तालाब कई जलीय जंतुओं का घर है और तालाब के सूखने के हालात तो इतने वर्षों में पहली बार ही बन रहे हैं। मयूर ने अपने जैसी सोच वाले लोगों को एकजुट किया और सभी ने मिलकर 6 अप्रैल को बचाव अभियान शुरू किया। वे आसपास के इलाकों में गए और स्थानीय मछुआरों से बात की। ये लोग भी तालाब के जंतुओं का बचाने में साथ हो गए। वाइल्ड लाइफ वार्डन और स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्यों से मुलाकात की गई। सभी लोग मयूर की मदद के लिए आगे आए। ग्रुप शुरू से ही जानता था कि यह काम काफी दुष्कर और थका देने वाला होगा। लोग घुटनों तक कीचड़ में उतरे। ऐसी गंदगी में शायद ही कोई उतरना चाहे, अपने शरीर पर गंदगी लगने दे, लेकिन वे जानते थे कि ये प्रयास कुछ बहुमूल्य जिंदगियां बचा सकता है। उन्होंने कई घंटों तक वहां सफाई की। जलीय जंतुओं में हमले की आशंका से खलबली मच गई थी। वे और गहराई में जाने लगे।
आखिरकार दस घंटे चले पहले ऑपरेशन में करीब एक हजार मछलियों की जान बचाई गई। 80 कछुए भी बचाए गए। इसमें से 41 जंतु खतरे में पड़ी प्रजातियों की पहली अनुसूची के हैं। इसमें फ्लैपशेल, ब्राउन रूफ टर्टल, स्पॉटेड इंडियन टर्टल, रेड इअर्ड स्लाइडर प्रजातियां शामिल हैं। कोई नहीं जानता कि कहां से ये दुर्लभ प्रजातियां तालाब में आकर रहने लगीं। एक सप्ताह बाद उनके दूसरे अभियान में भी ऐसे ही नतीजे मिले। टीम ने कुछ मोहक और अच्छे जंतुअों को अलग कर लिया, ताकि मानसून में बारिश के बाद जब तालाब में फिर पानी आ जाएगा तो इन जंतुओं को फिर यहां छोड़ दिया जाएगा। बाकियों को अन्य स्थानों पर छोड़ दिया गया। अब ग्रुप ने तय किया है कि राज्य के अन्य स्थानों पर भी जाकर यही काम करेंगे। इन जीव-जंतुओं की जान बचाकर इन लोगों को कितनी खुशी हुई है इसका अंदाजा तो इन लोगों के चेहरे देखकर ही लगाया जा सकता है।
फंडा यह है कि अगर आप नई पीढ़ी में विनम्रता पैदा करना चाहते हैं तो उन्हें जिंदगियां बचाने के लिए प्रेरित कीजिए। यह उनमें परिपक्वता लाने में भी मददगार साबित होगा।