सर टॉमस रो कौन था ? वह भारत क्यों आया ?
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‘ईमानदार टॉम’, जैसा उसे प्रिंस ऑफ़ वेल्स की बहन एलिज़ाबेथ कहती थी, को राजदूत बनना अपने जीवन का उद्देश्य लगा. सो उसने इंग्लैंड के राजा के लिए वह काम कर दिया जो उसके पहले कोई भी ब्रिटिश राजदूत नहीं कर पाया था. वह हिंदुस्तान को थाली में परोसकर अपने राजा के पास ले आया.
अंग्रेज़ी शासन भारत से व्यापार करने के लिए आतुर हुआ जा रहा था. 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी इंग्लैंड की रानी से हुक्मनामा लेकर हिंदुस्तान से व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर चुकी थी, पर बात नहीं बन पा रही थी. अकबर काल के दौरान और उसके बाद विलियम हॉकिन्स कंपनी के जहाजों को 1609 में भारत तो ले आया था, उसे जहांगीर के दरबार में जगह भी मिल गई थी, पर वह व्यापारिक संधि नहीं करवा पाया था.
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फिर कंपनी ने 1615 में थॉमस रो को 600 पौंड सालाना की तनख्वाह, जिसमें से आधे कंपनी के शेयरों में निवेश होने थे, पर भारत भेजा. उसके साथ था रानी का दिया हुआ वह व्यापारिक चार्टर जो इंग्लैंड की तकदीर बदलने जा रहा था. अगर कहें कि यह वह यात्रा थी जो हिंदुस्तान को ग़ुलाम बनाने जा रही थी तो ग़लत नहीं होगा. यह लेख थॉमस रो के तीन सालों का वर्णन है.
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沒關係
Méiguānxì
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