सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक चेत्रधिकार का संचेप में वर्णन कीजिए
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वर्ष 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रवर्तन से कलकत्ता में पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में सर्वोच्च न्यायाधिकरण (Supreme Court of Judicature) की स्थापना की गई।
बंगाल, बिहार और उड़ीसा में यह सभी अपराधों की शिकायतों को सुनने तथा निपटान करने के लिये एवं किसी भी सूट या कार्यों की सुनवाई एवं निपटान हेतु स्थापित किया गया था।
मद्रास एवं बंबई में सर्वोच्च न्यायालय जॉर्ज तृतीय द्वारा क्रमशः वर्ष 1800 एवं वर्ष 1823 में स्थापित किये गए थे।
भारत उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत विभिन्न प्रांतों में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई एवं कलकत्ता, मद्रास और बंबई में सर्वोच्च न्यायालयों को तथा प्रेसीडेंसी शहरों में सदर अदालतों को समाप्त कर दिया गया।
इन उच्च न्यायालयों को भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के संघीय न्यायालय की स्थापना तक सभी मामलों के लिये सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था।
संघीय न्यायालय के पास प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों को हल करने और उच्च न्यायालयों के निर्णय के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार क्षेत्र था।
वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के सभी न्यायालयों के लिये बाध्यकारी है।
इसे न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है - संविधान के प्रावधानों एवं संवैधानिक पद्धति के विपरीत विधायी तथा शासनात्मक कार्रवाई को रद्द करने की शक्ति, संघ एवं राज्यों के बीच शक्ति का वितरण या संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विरुद्ध प्रावधानों की समीक्षा।
संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान में भाग पाँच (संघ) एवं अध्याय 6 (संघ न्यायपालिका) के तहत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है।
संविधान के भाग पाँच में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।
अनुच्छेद 124 (1) के तहत भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश (CJI) होगा तथा सात से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं हो सकते जब तक कि कानून द्वारा संसद अन्य न्यायाधीशों की बड़ी संख्या निर्धारित नहीं करती है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सामान्य तौर पर मूल अधिकार क्षेत्र, अपीलीय क्षेत्राधिकार और सलाहकार क्षेत्राधिकार में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास अन्य कई शक्तियाँ हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का संगठन (Organisation)
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीस अन्य न्यायाधीश) हैं।
सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) 2019 के विधेयक में चार न्यायाधीशों की वृद्धि की गई। इसने मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायिक शक्ति को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया।
मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी।
संसद उन्हें विनियमित करने के लिये अधिकृत है।
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