Hindi, asked by aamir30120, 6 days ago

सर्वदा सर्व-कार्येषु, नास्ति तेषाम् अमंगलम्। येषाम् हृदिस्थो भगवान्, मंगलायतनो हरिः।।1।। सर्वव्यापक! सर्वज्ञ! सर्व-शक्ति-समन्वित!। अतिसुन्दर! देवेश! नमस्ते जगदीश्वर!।।2।। मूकम् करोति वाचालम्, पंगुं लंघयते गिरिम्। यत्कृपा, तमहम् वन्दे, परमानन्द-माधवम्।।3।। एक ईश: पिताऽस्माकम्, एकैव जननी धरा। सादरं प्रणमामस्तौ, वयं 'सर्वे सहोदरा:।।4।। translate in Hindi​

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Answered by alonejatti
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Explanation:

सर्वदा सर्व-कार्येषु, नास्ति तेषाम् अमंगलम्। येषाम् हृदिस्थो भगवान्, मंगलायतनो हरिः।।1।। सर्वव्यापक! सर्वज्ञ! सर्व-शक्ति-समन्वित!। अतिसुन्दर! देवेश! नमस्ते जगदीश्वर!।।2।। मूकम् करोति वाचालम्, पंगुं लंघयते गिरिम्। यत्कृपा, तमहम् वन्दे, परमानन्द-माधवम्।।3।। एक ईश: पिताऽस्माकम्, एकैव जननी धरा। सादरं प्रणमामस्तौ, वयं 'सर्वे सहोदरा:।।4।। translate in Hindi

Answered by akanksha7787
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Answer:

जो मनुष्य अपने-आपमें ही रमण करनेवाला और अपने-आपमें ही तृप्त तथा अपने-आपमें ही संतुष्ट है, उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं है।परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमने वाला आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं रहता।।

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