Hindi, asked by oko46, 11 months ago

'सर्वधर्म समभाव' विषय पर अपने विचार लिखिए।​

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Answered by bhatiamona
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Answer:

'सर्वधर्म समभाव' विषय पर मेरे विचार इस प्रकार है ,

'सर्वधर्म समभाव' का अर्थ है धर्म एक होता है | धर्म एक ही है धर्म के अनेक प्रकार नहीं है | सब एक है | बस हम मनुष्य ने इसे अनेक नाम दिए है | हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख सब नाम दिए है | सभी में धर्म का मतलब है एक ही है | सब भगवान के बच्चे है | सभी धर्म में यह बताया गया भगवान एक ही है | इस दुनिया में सब को अच्छे कम और अच्छे कर्म करने चाहिए |  

Answered by atharvanaik51
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Answer:

संसार में जब से मनुष्य ने होश सँभाला है, तभी से कुछ अलौकिक और अतिमानवीय शक्तियों में उसका विश्वास रहा है। उसने इस शक्ति को ईश्वर नाम दिया है। ईश्वर की शक्ति को चुनौती से परे माना है तथा उसे इस विश्व का नियंता कहा है। इन विषयों से सम्बन्धित विचार ही धर्म है। धर्म से मनुष्य का सम्बन्ध बहत गहरा तथा पुराना है।

संसार में प्रचलित धर्म–

संसार में आज अनेक धर्म प्रचलित हैं अथवा वैदिक धर्म को प्राचीनतम माना जाता है। इसके पश्चात् ईसाई और इस्लाम धर्म आते हैं। पश्चिम में पारसी और यहूदी धर्म भी चलते हैं। हिन्दू धर्म से निकले सिख, जैन, बौद्ध धर्म भी हैं। ईसाई धर्म के मानने वालों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। उसके बाद क्रमशः इस्लाम, बौद्ध और हिन्दू ६ गर्म के मानने वाले आते हैं।

सच्चे धर्म के लक्षण–

जिसको धारण किया जाय वह धर्म है। सच्चा धर्म वही है जो मानवता का पाठ पढ़ाए। मनुष्यों के बीच एकता, प्रेम और सद्भाव को स्थापित करने वाला धर्म ही सच्चा धर्म है। धर्म पूजा–पद्धति मात्र नहीं है। वह जीवन जीने की एक पद्धति अवश्य है। भारत में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं, वे हैं–धैर्य, क्षमा, आत्मसंयम, अस्तेय, पवित्रता, इन्द्रिय–निग्रह, बुद्धिमता, विद्या, सत्य और अक्रोध। ये लक्षण प्रायः प्रत्येक धर्म में मान्य हैं। ये लक्षण मानवता की पहचान हैं।

अत: मानवता को ही सच्चा धर्म कहा जा सकता है।

धार्मिक उन्माद–

प्रत्येक धर्म में कुछ लोग होते हैं जो धर्म के इस रूप को नहीं मानते। उनको अपना धर्म ही सर्वश्रेष्ठ लगता है। दूसरे धर्मों की अच्छी बातें भी उनको ठीक नहीं लगती। सब मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं–

यह बात उनको ठीक नहीं लगती। गांधी जी के कथन–ईश्वर, अल्लाह एक ही नाम भी उनको प्रिय नहीं हैं। ऐसे व्यक्ति धार्मिक समभाव का समर्थन नहीं करते। वे दूसरे धर्म के अनुयायियों को सताते हैं और उनके पूजागृहों को नष्ट करते हैं। वे धार्मिक उन्माद फैलाकर समाज की शांति को भंग करते हैं और देश को संकट में डाल देते हैं।

सर्वधर्म समभाव–

सच्चे धर्मात्मा सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते हैं। उनके मत में सभी धर्म समान रूप से सम्मान के पात्र हैं। धर्म अलग होने के कारण झगड़ा करना, रक्तपात करना, हिंसा फैलाना, सम्पत्ति नष्ट करना और स्त्री–पुरुष–बच्चों की हत्या करना, न धर्म है, न यह उचित ही है।

सब से प्रेम करना और हिलमिलकर रहना ही मनुष्यता की पहचान है। अपने धर्म को मानना किन्तु अन्य धर्मों का आदर करना ही सर्वधर्म समभाव है। यही विश्व की समृद्धि का रास्ता है।

उपसंहार–

शायर इकबाल ने कहा है–’मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’। धर्म शत्रुता की नहीं प्रेम की शिक्षा देता है। हर धर्म भाईचारे की बात कहता है। धर्म के नाम पर लड़ना पागलपन है। इस पागलपन से बचना ही मानवता के लिये श्रेयष्कर है।

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