सरकार के कुछ विभागो मे सुचना पट्टटो पर अशुदध हिंदी लिखि मिलती है इस ओर धयान आकरशित करते हुए किसी दैनिक सामाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए
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मैं समझता हूँ कि लगातार यह धारणा बनती जा रही है कि सरकार चारों ओर से घिरी हुई है और हम अपनी कार्यसूची का कार्यान्वयन करने में सफल नहीं रहे हैं। देश में इस प्रकार का एक माहौल बनाया जा रहा है। इस संबंध में मैं अत्यंत विनम्रता से कहना चाहूंगा कि कई मामलों में आज मीडिया की भूमिका अभियोक्ता, अभियोजक और न्यायाधीश के रूप में हो गई है।
इस प्रकार से तो कोई भी संसदीय लोकतंत्र कार्य नहीं कर सकता और मैं आप सबको बताना चाहूंगा कि जब हम सरकारी निर्णय, खासकर बड़े-बड़े निर्णय लेते हैं, तो हमारे पास इससे संबंधित सभी तथ्य नहीं होते हैं परन्तु फिर भी हमें निर्णय लेना होता है। जब मैं कैम्ब्रिज में एक छात्र था, तब इम्पीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज के तत्कालीन अध्यक्ष सर पॉल चैम्बर्स हम लोगों से मिलने आए थे और इस संबंध में बात की थी कि अच्छा प्रबंधक कौन है और उद्योग जगत द्वारा अच्छा प्रबंधक किसे माना जाएगा।
उन्होंने छात्रों के हमारे समूह को बताया कि हम जिस अनिश्चित विश्व में रह रहे हैं, उसमें यदि हमारे द्वारा लिए गए दस में से पांच निर्णय बाद में सही साबित होते हैं, तो माना जाएगा कि कार्य सही तरीके से किया गया है। यदि हमारे द्वारा लिए गए दस निर्णयों में से सात सही साबित होते हैं, तो माना जाएगा कि उत्कृष्ट प्रदर्शन किया गया है। परन्तु यदि कोई ऐसी प्रणाली है जिसमें दस में से सभी दस मामलों में बेहतर प्रदर्शन करने की अपेक्षा होती है, तो मैं समझता हूँ कि इतनी प्रभावी तो कोई भी प्रणाली नहीं होती है, जो इस प्रकार की दुरूह शर्तों को पूरा कर सके।