सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और देवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है स्पष्ट कीजिए
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सरकारी तंत्र में जोड़ पंचम की नाक को लेकर जो चिंता या बदहवास ही दिखाई देती है वह दो तरह की मानसिकता को दर्शाती है आधुनिक भारत में भी हम इस बात पर सबसे अधिक खुश होते हैं जब इंग्लैंड या अमेरिका हमारी पीठ ठोकता है ।हमें लगता है कि हमें हर समय किसी पश्चिम देश के सर्टिफिकेट की जरूरत है ।इस मुद्दे का दूसरा पहलू है कि सरकारी तंत्र में लोग तिल का ताड़ बनाने में माहिर होते हैं ।
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है, उससे उनकी गुलाम मानसिकता का बोध होता है। इससे पता चलता है कि वे आज़ाद होकर भी अंग्रेजों के गुलाम हैं। उन्हें अपने उस अतिथि की नाक बहुत मूल्यवान प्रतीत होती है जिसने भारत को गुलाम बनाया और अपमानित किया। वे नहीं चाहते कि वे जॉर्ज पंचम जैसे लोगों के कारनामों को उजागर करके अपनी नाराजगी प्रकट करें। वे उन्हें अब भी सम्मान देकर अपनी गुलामी पर मोहर लगाए रखना चाहते हैं।
इस पाठ में ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा पर भी प्रश्नचिह्न लगाया गया है। लेखक कहना चाहता है कि अतिथि का सम्मान करना ठीक है, किंतु वह अपने सम्मान की कीमत पर नहीं होना चाहिए।