सरल सूक्ष्मदर्शी के चार उपयोग लिखिए
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सूक्ष्मदर्शिकी या सूक्ष्मदर्शन (अंग्रेज़ी:माइक्रोस्कोपी) विज्ञान की एक शाखा होती है, जिसमें सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म जीवों को बड़ा कर देखने में सक्षम होते हैं, जिन्हें साधारण आंखों से देखना संभव नहीं होता है। इसका मुख्य उद्देश्य सूक्ष्मजीव संसार का अध्ययन करना होता है। इसमें प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन और विद्युतचुम्बकीय विकिरण का प्रयोग होता है। विज्ञान की इस शाखा मुख्य प्रयोग जीव विज्ञान में किया जाता है। विश्व भर में रोगों के नियंत्रण और नई औषधियों की खोज के लिए माइक्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता है।[1] सूक्ष्मदर्शन की तीन प्रचलित शाखाओं में ऑप्टिकल, इलेक्ट्रॉन एवं स्कैनिंग प्रोब सूक्ष्मदर्शन आते हैं।
परागकणों का स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्राप्त चित्र
एक स्टीरियो सूक्ष्मदर्शी
माइक्रोस्कोपी विषय का आरंभ १७वीं शताब्दी के आरंभ में हुआ माना जाता है। इसी समय जब वैज्ञानिकों और अभियांत्रिकों ने भौतिकी में लेंस की खोज की थी। लेंस के आविष्कार के बाद वस्तुओं को उनके मूल आकार से बड़ा कर देखना संभव हो पाया। इससे पानी में पाए जाने वाले छोटे और अन्य अति सूक्ष्म जंतुओं की गतिविधियों के दर्शन सुलभ हुए और वैज्ञानिकों को उनके बारे में नये तथ्यों का ज्ञान हुआ। इसके बाद ही वैज्ञानिकों को यह भी ज्ञात हुआ कि प्राणी जगत के बारे में अपार संसार उनकी प्रतीक्षा में है व उनका ज्ञान अब तक कितना कम था।
माइक्रोस्कोपी की शाखा के रूप में दृष्टि संबंधी सूक्ष्मदर्शन (ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी) का जन्म सबसे पहले माना जाता है। इसे प्रकाश सूक्ष्मदर्शन (लाइट माइक्रोस्कोपी) भी कहा जाता है। जीव-जंतुओं के अंगों को देखने के लिए इसका प्रयोग होता है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप) अपेक्षाकृत महंगे किन्तु बेहतर उपकरण होते हैं।[1] सूक्ष्मदर्शन के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज अत्यंत महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसकी खोज के बाद वस्तुओं को उनके वास्तविक आकार से कई हजार गुना बड़ा करके देखना संभव हुआ था। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी में हुई थी। हालांकि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप अन्य सूक्ष्मदर्शियों से महंगा होता है और प्रयोगशाला में इसका प्रयोग करना छात्रों के लिए संभव नहीं होता, लेकिन इसके परिणाम काफी बेहतर होते हैं। इससे प्राप्त चित्र एकदम स्पष्ट होते हैं।
सूक्ष्मदर्शन में एक अन्य तकनीक का प्रयोग होता है, जो इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शन से भी बेहतर मानी जाती है। इसमें हाथ और सलाई के प्रयोग से वस्तु का कई कोणों से परीक्षण होता है। ग्राहम स्टेन ने इसी प्रक्रिया में सबसे पहले जीवाणु को देखा था।[1]
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