सरल उपकला व संयुक्त रूप कला में अंतर बताईए।
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संयुक्त उपकला ऊतक:
यह उपकला ऊतक कई स्तरों में व्यवस्थित रहता है। कोशिकाओं के आधार पर यह स्तरित उपकला शल्की, घनाकार या स्तम्भी प्रकार का हो सकता है। स्त्रियों के मूत्र मार्ग में इस प्रकार का ऊतक पाया जाता है।
1 सरल उपकला = सरल उपकला में कोशिका की सिर्फ एक ही परत होती है ।यह परत सामान्यतः अवशेषी या स्त्रावी सतहो पर पाई जाती है ।यह उपकला बहुत ही नाजुक होती है तथा ऐसे स्थानों पर पाई जाती है जहाँ बहुत कम टूट-फूट होती है ।यह पांच प्रकार की होती है जिनके नाम कोशिकाओं के आकार तथा कार्यों के अनुसार भिन्न होते हैं ।
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उपकला (एपिथीलियम) एक अत्यंत महीन और चिकनी झिल्ली है जो शरीर के भीतरी समस्त अंगों के बाह्य पृष्ठों को आच्छादित किए हुए है। इसी का दूसरा रूप शरीर के कुछ खोखले विवरों के भीतरी पृष्ठ को ढके रहता है, जिसे अंतर्कला कहा जाता है।
उपकाला शरीर का एक विशिष्ट ऊतक है जो अंगों का आच्छादन करके उनकी रक्षा करता है। इसके अक्षुण्य रहने से जीवाणु भीतर प्रवेश नहीं कर पाते। यह कला समस्त पाचनप्रणाली, मुख से लेकर मलद्वार तक को, आच्छादित किए हुए है। यही कला इसके भीतरी पृष्ठ को आच्छादित करती हुई ग्रंथिक उपकला का रूप ले लेती है और प्रणाली की भित्तियों में घुसकर पाचक रसोत्पादक ग्रंथिंयाँ बन जाती है। शरीर में जिनी भी प्रणालियाँ या नलिकाएँ हैं, जैसे श्वासनाल तथा प्रणालिकाएँ, रक्तवाहिनियाँ, रसवाहिनियाँ आदि, सब उपकला से आच्छादित हैं। इसकी कोशिकाएँ एक दूसरे के अत्यंत निकट रहती हैं।