Saransh of chapter 5 Chitrakoot Mein Bharat Bal Ram Katha
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चित्रकूट में भरत पाठ का सारांश
जब राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था तो उन दिनों भरत अपनी ननिहाल में थे। राम को पिता दशरथ द्वारा वनवास देने पर राम वन को चले गए और उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी वनवास को चले गये। राम के वनवास को जाने के बाद दशरथ ने उनके बिछोह में प्राण त्याग दिए।
भरत को उनके ननिहाल में सूचना भिजवाई गई और उन्हें तुरंत बुलाया गया। समाचार पाकर भरत तुरंत अयोध्या की ओर चल दिए। आठ दिन बाद अयोध्या पहुंचने पर भरत को अयोध्या सुनसान नजर आई। उनका मन किसी आशंका से त्रस्त हो गया। उन्होंने राज महल में जाकर अपने पिता को ढूंढा तो पिता नहीं मिले। फिर वह अपनी माता कैकेई से मिले। कैकेई से उन्हें सारी बात पता चली कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए और बड़े भाई राम वन को चले गए हैं सीता और लक्ष्मण के साथ।
भरत को अपने पिता की मृत्यु का बड़ा दुख हुआ। भरत ने कैकेई से राम के वन जाने का कारण पूछा तो कैकेई सारी बात बता दी उन्होंने (कैकेई) ने ही महाराज दशरथ से राम के वन जाने का वरदान मांगा था। ताकि उनको (भरत) को राज्य की राजगद्दी मिल सके। यह सुनकर भरत कैकई पर बहुत नाराज हुए और उन्हें काफी भला बुरा कहा। फिर वह माता कौशल्या से मिले और उनसे क्षमा मांगी। सब लोगों ने उनसे राजगद्दी पर बैठने के लिए कहा तो भरत ने राजगद्दी पर बैठने से इंकार कर दिया। वह बोले कि यह राजगद्दी राम की है और मैं राम को वन से बुला कर लाऊंगा और वही इस राजगद्दी को संभालेंगे।
भरत राम को वापस लाने के लिये अपनी सेना और राज्य के अन्य लोगों के साथ वन की ओर चल दिये। उस समय राम गंगा जमुना के संगम के पार चित्रकूट नामक जगह पर एक कुटी बनाकर रह रहे थे। भरत ने राम से भेंट की और उन्हें पिता की मृत्यु का समाचार दिया। ये सुनकर राम सन्न रह गये।भरत ने राम से अनुरोध किया कि वह तुरंत अयोध्या लौट चलें और राजगद्दी को संभाले। पर राम ने इंकार कर दिया उन्होंने कहा कि वह अपने वचन से फिर नहीं कर सकते। पिता की आज्ञा से ही वन की ओर आये हैं और अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकते। 14 वर्ष के वनवास के पश्चात ही वो अयोध्या आएंगे।
भरत के जब काफी आग्रह करने पर राम नहीं माने तो भारत ने उनसे उनकी खड़ाऊँ (चरण पादुका) ले लीं। उन्होंने कहा कि इन चरण पादुकाओं के राजगद्दी पर रखकर ही राम के प्रतिनिधि के रूप में अयोध्या क राज संभालेंगे और उनके लौटने का इंतजार करेंगे। उसके पश्चात भरत अयोध्या की ओर लौट गए और उन्होंने राम की चरण पादुका को राजगद्दी पर स्थापित किया और उनके प्रतिनिधि बनकर अयोध्या पर राज करने की प्रतिज्ञा ली। उन्होंने राजसी जीवन त्याग दिया और नंदीग्राम में एक कुटी बनाकर साधु की तरह रहने लगे और वहीं से राजकाज की व्यवस्था चलाने लगे।