saransh of Hindi poem gagan ka chand
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद कविता का सारांश
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई है:
कवि ने कविता में चाँद की तरफ़ से आदमी की इच्छाओं और सपनों के बारे में वर्णन किया है|
रात को यह गगन का चाँद मुझसे कहने लगा , आदमी भी अजीब जीव है , अपने खुद ही मुसीबतें बनाता है और खुद ही फंस जाता है , और फिर सोच-सोच खुद ही परेशान होता है और देर रात क जगता है | कवि से वार्तालाप में चाँद मानव के अस्थिर और अजीब स्वभाव के बारे में बताता है। कवि से कहता है कि मानव के स्वभाव को वह कभी भी अभी तक नहीं समझ पाया वह जीवन में क्या चाहता है उसकी क्या इच्छाएँ है और परेशानियाँ क्या है|
चाँद कहता हे मनुष्य मैं जनता हूँ, मेरे सामने ही मानव की उत्पत्ति हुई। मानव अनेक रूप में उसके सामने जन्मा और मृत्यु को प्राप्त हुआ है। तुझे बहुत पास चांदनी में बैठ कर अपने सपनों की सही करते हुए देखा है , आदमी का सपना पानी के बुलबुले की तरह है , आज देखता और कल फिर टूट जाता है , किन्तु फिर भी आदमी मुसीबतों से खेलता है और आगे बढ़ता है|