Hindi, asked by nitesh808277767, 1 day ago

सरस काननि दै अँगुरी रहि बो जब ही मुरली धुनि मंद बजैहै। मोहनी तानन सों रसखानि अटा-चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥ टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै। माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै। प्रसाद और व्यख्या​

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Answered by tuhinjati
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Answer:

कृष्ण की मुरली की मनमोहक धुन से मोहित एक गोपिका कहती है- हे सखी! जब कृष्ण धीरे-धीरे मधुर स्वर में वंशी बजाएँगे तो मैं अपने कानों में अँगुली डाल लूँगी, ताकि वंशी का मोहक स्वर मुझे सुनाई न दे और अपना जादू न चला सके। फिर वह आनंदसागर कृष्ण चाहे अट्टालिकाओं पर ऊँचे चढ़कर भी अपनी मोहिनी तान बजा ले, गोधन लोक गीत गाए तो गाता रहे पर मुझ पर उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। परंतु यदि किसी भी प्रकार उस कृष्ण की मधुर वंशी-धुन मेरे कानों में पड़ गई, तो ब्रजवासियों! फिर मुझे कोई कितना ही समझाए, मेरी मस्ती कम नहीं होने वाली। गोपिका अपनी माँ को संबोधित करती हुई कहती है कि हाय री माँ! कृष्ण के मुख की मोहिनी मुसकान इतनी सम्मोहक है कि उसके जादू से बचा नहीं जा सकता। उसका सुख मुझसे चाहकर भी नहीं सँभाला जाएगा।

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