सरसति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात।।
ये कवी वृन्द का दोहा है।
इसका अर्थ लिखे।
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सरस्वति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात। ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढ़ै, बिन खरचै घट जात।। "सरस्वती यानी ज्ञान के भंडार की एक विशेषता है कि इसे जितना साझा किया जाए यह उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान/जानकारी साझा न की जाए तो यह निरंतर घटती रहेगी।"
Explanation:
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