सरदार पृथ्वी सिंह ने कौन सा मार्ग जाकर अपने को बापू के सामने अपन कर दिया बापू ने उसे अपने आश्रम में रहने का न्योता क्यों दिया
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बाबा पृथ्वी सिंह आजाद (१८९२ - १९८९) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी [1] तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे।[2] वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे।[3] सन १९७७ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया। [4]
पृथ्वी सिंह आजाद
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बाबा पृथ्वी सिंह आजाद (१८९२ - १९८९) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी [1] तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे।[2] वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे।[3] सन १९७७ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया।
पृथ्वी सिंह को 'जिन्दा शहीद' भी कहा जाता है। उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी की सजा सुनायी गयी थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। स्वतन्त्रता संग्राम में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्हें सेल्युलर जेल में रखा गया था । उनकी 'लेनिन के देश में' नामक पुस्तक बहु चर्चित पुस्तकों में से एक है। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय अजय भवन में जीवन पर्यन्त रहे।
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