Social Sciences, asked by mrigankoghosh5667, 11 months ago

सरदार वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि कैसे मिली?

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Answered by shaider
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लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल पर निबन्ध | Essay on Sardar Vallabhai Patel in Hindi

1. प्रस्तावना:

सरदार पटेल भारतमाता के उन वीर सपूतों में से एक थे, जिनमें देश सेवा, समाज सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी । अपनी दृढ़ता, आत्मबल, संकल्पशक्ति, निष्ठा, अटल निर्णय शक्ति, दृढ़ विश्वास, साहस, पौरुष एवं कार्य के प्रति लगन के कारण ही वे ”लौह पुरुष” के नाम से जाने जाते थे । वे कम बोलते थे, काम अधिक करते थे ।

सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे, अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान् समर्थक थे । सादा जीवन, उच्च विचार, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग, यही उनके आदर्श थे । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात 562 छोटी-बड़ी रियासतों को विलय कर उन्हें भारतीय संघ बनाने में उनकी अति महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

2. जन्म एवं शिक्षा-दीक्षा:

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था । उनके पिता झबेरभाई भी एक महान देशभक्त थे । देशभक्ति का पाठ भी उन्होंने इन्हीं से पढ़ा था । वल्लभभाई बचपन से ही काफी निडर थे । कहा जाता है कि बचपन में उन्हें एक बड़ा-सा फोड़ा हो गया था । उन्होंने उस फोड़े को अपने ही हाथों लोहे की सलाख गरम कर फोड़ डाला था ।

उनके स्कूली जीवन में भी यही निडरता देखने को मिलती है । जहां वे पढ़ते थे, वहां के एक टीचर बच्चों को अपनी ही दुकान से किताबें खरीदने के लिए विवश करते थे । उनकी धमकी से डरकर कोई उनका विरोध नहीं कर पाता था, किन्तु सरदार पटेल ने बच्चों की हड़ताल कराकर टीचर को ऐसा करने से रोक दिया । सरदार पटेल चूंकि साधारण किसान के पुत्र थे । जब उन्होंने देखा कि उनके भाई विट्ठल को पढ़ने में कठिनाई आ रही है, तो उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई का विचार त्याग दिया ।

मुख्तारी की परीक्षा देकर जो रुपया उन्होंने एकत्र किया, उसी से उन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में सन् 1910 में उत्तीर्ण की । इस परीक्षा में अच्छे अंक पाने पर उन्हें साढ़े सात सौ रुपये बतौर पुरस्कार में मिले और उनकी फीस भी माफ हो गयी । वे इंग्लैण्ड से आकर घर पर ही वकालत करने लगे ।

3. स्वतन्त्रता आन्दोलन व देश सेवा में उनका योगदान:

सरदार पटेल देश की सक्रिय राजनीति में सन् 1917 से आये । जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड में जब निर्दोषों का जनसंहार हुआ, उसी के विरोध में उन्होंने बैरिस्ट्री त्याग दी । विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए काशी विद्यापीठ हेतु बर्मा जाकर दस लाख रुपये एकत्र कर लाये ।

जब नागपुर में सिविल लाइन्स में राष्ट्रीय झण्डे के साथ जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध था, तब सरदार पटेल ने स्वयं जाकर झण्डा सत्याग्रह का संचालन किया । इसी दौरान उन्होंने बोरसद के एक मुसलमान खौफनाक डाकू के आतंक से वहां के निवासियों को मुक्ति दिलायी । सन् 1920 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से प्रभावित होकर वे बारदोली में चले गये । वहां स्वदेशी आन्दोलन के साथ-साथ शराब पीने पर प्रतिबन्ध लगाया ।

पटेलजी ने किसानों का आवाहन करते हुए कहा था कि- ”यह रास्ता बड़ी कठिनाइयों और संघर्षों से भरा है । सरकार तो बन्दूकों, भाले और अस्त्र-शस्त्र की शक्तियों से पूर्ण है । वह एक निर्दयी और जालिम सरकार है । यदि उन हथियारबन्द, निर्दयी विदेशी शक्ति के प्रहारों को सहने का साहस तुममें है, तो आगे बढ़ो । अपमानित जीवन से कहीं अच्छा स्वाभिमान युक्त स्वतन्त्रता युक्त जीवन है । चाहे कितनी ही विपत्तियां आयें, मैं आपके साथ हूं ।”

ADVERTISEMENTS:

बारदोली में 75 गांवों का नेतृत्व करते हुए सरदार पटेल ने अंग्रेज सरकार को अपनी शक्ति व किसानों का आत्मबल दिखा ही दिया । अंग्रेजों के विरोध के बाद भी सरदार पटेल ने वहां पर उनकी शक्ति को क्षीण कर दिया । उनके समर्थन में तैयार जनमानस की ताकत को देखकर अंग्रेज घबरा गये और सोचने लगे कि पटेल के रहते गुजरात तो क्या, सारे देश में ही स्वराज आ जायेगा ।

सन् 1930 के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने में पटेलजी का बड़ा योगदान है । नेहरू के गिरफ्तार होने के बाद पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभाला । उन्हें जेल भी जाना पड़ा । जेल से बाहर आते ही किसानों की करबन्दी को लागू करने हेतु प्रयत्न किया । इस पर 80,000 किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दीं । 17 नवम्बर 1940 को उनके सत्याग्रह की घोषणा से घबराकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया ।

आंतों के रोग के बाद भी उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ा । भारत छोड़ो आन्दोलन हेतु न केवल जनता को, बल्कि पत्रकारों को भी क्रान्तिकारी प्रभाव डालने हेतु तैयार किया । सन् 1946 को जब अस्थायी सरकार बनी, तो गृहमन्त्री नियुक्त होते ही उन्होंने विभाजन के खिलाफ होते हुए भी उस समय की गम्भीर समस्याओं में अपना आपा नहीं खोया ।

निर्णयात्मक हल ढूंढा । 562 रियासतों को भारत में विलय कराने वाले पटेल ने तो हैदराबाद के निजाम को अच्छा सबक सिखाया । पाकिस्तान में विलय होकर भारत का विरोध करने वाले निजाम ने धमकी दे डाली- ”यदि भारतीय फौज हैदराबाद में प्रवेश करेगी, तो डेढ़ करोड़ हिन्दुओं की केवल हड्‌डियां मिलेंगी ।” पटेल ने भारतीय फौज को भेजकर तीन दिन के संघर्ष में एक हजार निजाम के सैनिकों को मार गिराया ।

पटेल ने अपने ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ का मन्दिर निर्माण करवाया । गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से दूर हटाना, कश्मीर समस्या का समाधान निकालना था, किन्तु नेहरूजी कश्मीर के मामले को पटेल के विरोध के बाद भी संयुक्त राष्ट्र संघ ले गये । नेहरू और पटेल की विचारधारा में काफी अन्तर था । फिर भी पटेल अपने विशिष्ट अन्दाज से उसे हल कर लेते थे ।

4. उपसंहार:

भारत का इतिहास हमेशा इस महान, साहसी, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल, शक्तिसम्पन्न महान पुरुष को याद करेगा । 562 रियासतों का विलय कराने वाले लौह पुरुष को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा ।

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