सरवन कुमार की कहानी
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यह सतयुग की एक पौराणिक कथा है| श्रवण कुमार के माता पिता अंधे थे, उनको आखों से कुछ दिखाई नहीं देता था| श्रवण की माँ ने बहुत कष्ट झेलकर अपने बेटे को पालन पोषण किया| अंधे पिता किसी तरह मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार के लिए भोजन जुटा पाते थे|
बालक श्रवण कुमार अपने माता पिता के कष्टों को भली भांति समझते थे| थोड़े बड़े हुए तो श्रवण कुमार अपने माता पिता के कामों में हाथ बंटाने लगे|
श्रवण कुमार जब बड़े हुए तो पूरे तन-मन से माता पिता की सेवा करते थे| सुबह उठकर माता पिता को भजन कीर्तन सुनाते, फिर चूल्हा जलाकर खाना पकाते|
श्रवण कुमार की माँ उनसे कहतीं कि बेटा मैं स्वयं खाना बना लूंगी लेकिन श्रवण कुमार को डर था कहीं खाना बनाने में अंधी माँ के हाथ ना जल जायें इसलिए वह स्वयं ही खाना बनाते थे|
माता पिता को भोजन कराने के बाद ही वह बाहर मजदूरी करने जाते थे| दिनभर बाहर मेहनत करने के बाद जब श्रवण कुमार शाम को वापस आते तो सोने से पहले माता पिता के पाँव दबाते|
श्रवण के माता पिता ईश्वर का धन्यवाद देते थे और कहते थे कि हमारे कुछ अच्छे कर्मों की वजह से ही हमें श्रवण जैसा पुत्र मिला। भगवान ऐसी संतान सभी को दे|
सब कुछ सुखद चल रहा था| माता पिता को चिंता हुई कि श्रवण का विवाह कर देनी चाहिए| उचित अवसर निकालकर श्रवण का विवाह भी कर दिया गया|
दुर्भाग्यवश, श्रवण की पत्नी का व्यवहार माता पिता के प्रति बिल्कुल अच्छा नहीं था| वह श्रवण के माता पिता का ध्यान नहीं रखती थी और ना ही उनके खाने पीने का सही से ध्यान देती थी|
श्रवण ने पत्नी से इसकी शिकायत की तो भी पत्नी ने श्रवण की बात नहीं मानी और जब श्रवण ने उसका विरोध किया तो वह घर छोड़कर अपने पिता के घर चली गयी|
श्रवण अपने माता पिता को कभी कुछ दुःख नहीं होने देते थे| एक दिन श्रवण के माता पिता ने उनसे कहा – बेटा तुम्हारे जैसे पुत्र को पाकर हम तो धन्य हो गए हैं| अब एक और हमारी इच्छा है कि हम तीर्थ यात्रा करना चाहते हैं| अब उसी से हमारे हृदय को शांति मिलेगी|
माता पिता की इच्छा सुनकर श्रवण कुमार ने उन्हें तीर्थ यात्रा कराने का निश्चय कर लिया| उन दिनों रेल, बस और ट्रेन नहीं हुआ करती थीं तब श्रवण कुमार ने दो बड़ी टोकरियां लीं और उन दोनों टोकरियों को एक डंडे के दोनों ओर टांग लिया|
इस तरह श्रवण कुमार ने एक टोकरी में अपनी माता और दूसरी टोकरी में पिता को बैठाया और डंडा अपने कंधे लादकर अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने निकल पड़े|
अपनी स्वयं की परवाह किये बिना, कठिन और लम्बी यात्रा के बाद श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा कराई| श्रवण कुमार उन्हें कई तीर्थों पर लेकर गए और वहां का सम्पूर्ण नजारा अपने माता पिता को बोलकर सुनाते तो एक तरह से माता पिता श्रवण की आखों से समस्त तीर्थो के दर्शन कर रहे थे|
यात्रा के दौरान, एक बार श्रवण के माता पिता को प्यास लगी और उन्होंने श्रवण से पानी लाने को कहा| कलश लेकर श्रवण पानी लेने निकल पड़े, पास ही एक तालाब दिखा जिसमें शीतल जल था|
राजा दशरथ वहीँ जंगल में शिकार खेलने आये थे| राजा दशरथ शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे| शब्दभेदी अर्थात केवल शब्द सुनकर ही निशाना लगा दिया करते थे|
श्रवण कुमार ने जैसे ही कलश पानी में डुबोया तो उसकी आवाज सुनकर दशरथ को लगा कि कोई जानवर पानी पीने आया होगा| यही सोचकर उन्होंने बाण चलाया और वह बाण श्रवण कुमार को जा लगा|
जब दशरथ वहां पहुंचे तो उन्हें अपनी इस बड़ी भूल का अहसास हुआ, श्रवण कुमार ने दशरथ से विनती की कि पास में ही उनके प्यासे माता पिता पानी का इन्तजार कर रहे हैं, कृपया उन्हें पानी जरूर पिला देना और वहीँ श्रवण कुमार की मृत्यु हो गयी|
राजा दशरथ अपनी इस गलती से बेहद व्याकुल हो उठे और वो पानी लेकर उनके माता पिता के पास गये| राजा की आहट पाकर माता पिता ने पूछा कि तुम कौन हो ? तुम तो श्रवण कुमार नहीं हो ? हमारा पुत्र कहाँ है ?
राजा दशरथ ने जब पूरी बात बताई तो माता पिता दुःखी होकर रोने लगे और रोते रोते ही उन्होंने प्राण त्याग दिए| मरने से पहले श्रवण के माता पिता ने दशरथ को श्राप दिया कि जिस तरह हम अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर प्राण त्याग रहे हैं| एकदिन तू भी इसी तरह अपने पुत्र के वियोग में तड़पकर प्राण त्याग देगा|
राजा दशरथ भगवान् राम के पिता थे| श्राप के अनुसार जब राम वनवास को गए तो दशरथ ने उनके वियोग में रो रोकर प्राण त्याग दिए थे|
यह श्रवण कुमार की पौराणिक कथा है| धन्य है यह धरती जिसने श्रवण कुमार जैसे मातपितृ भक्त को जन्म दिया|