ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
1.
ऊधौ, हम आजु भई बड़-भागी ।
जिन अँखियन तुम स्याम बिलोके, ते अँखियाँ हम लागी ।
जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी ।
अति आनंद होत है तैसे, अंग-अंग
सुख
रागी ।।
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*Question:
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
1.ऊधौ, हम आजु भई बड़-भागी ।
जिन अँखियन तुम स्याम बिलोके, ते अँखियाँ हम लागी ।
जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी ।
अति आनंद होत है तैसे, अंग-अंग सुख रागी ।।
*Answer:
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सूरदास जी हैं।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद में गोपियाँ उद्धव को संबोधित करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! आज हम स्वयं को बहुत भाग्यशाली मान रहे हैं क्योंकि जो आँखे हमारे प्यारे कृष्ण के दर्शन करके आयीं हैं उन्हीं आँखों के दर्शन हमें मिल गए हैं।
भाव स्पष्टीकरण :
सूरदास ने भ्रमर गीत में ब्रज की गोपिकाओं की विरह-व्यथा का बहुत ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। श्रीकृष्ण कंस को मारने मथुरा गए लेकिन बहुत दिनों तक वापस ब्रज नहीं आये। यहाँ श्रीकृष्ण के बिना गोपिकाएँ बहुत ही उदास थीं। वे कृष्ण की राह देखती थीं। श्रीकृष्ण अपने सखा उद्धव को ब्रज के बारे में जानने के लिए भेजते हैं। उद्धव से गोपिकाएँ कहती हैं – ‘आज हम बहुत ही भाग्यशालिनी बन गईं। जिन आँखों से तुमने श्याम को देखा उन आँखों को देखने का सौभाग्य हमें मिल रहा है। जैसे फूल सुगंध ले आता है, हवा प्यारे भौरे को, वैसे ही हमें श्रीकृष्ण का संदेश मिल गया है। श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बहुत ही आनंद हो रहा है और हमारे अंग-अंग में सुख का अनुभव हो रहा है नहीं तो हमारा विरह-व्यथा से जीना मुश्किल हो जाता।
विशेष :
अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार। ब्रज भाषा। गोपिकाओं का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है।
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