Hindi, asked by arnavshyam07, 14 hours ago

सत्कर्तव्य
ने कवि ने अपरिमित ज्ञान और बल से संपन्न मनुष्य को स्वार्थ का परित्याग
निवासियों की सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी है। संसार
अपने कर्म में लीन हैं, अत: मनुष्य को भी देश और जाति से उऋण हो
महिए।
र देखा कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा ही सच्चा
- रवींद्रनाथ टैगोर
- जग में सचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरत हैं।
धुन है एक-न-एक सभी को, सबके निश्चित व्रत हैं
जीवनभर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।।
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता।
सब हैं लगे कर्म में, कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता।
है
है उद्देश्य नितांत तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अंत कर्ममय तन का।।
Iska bhavarth batao plz

Answers

Answered by morebibhishan10
0

good njoihfdfbnnhgv ghigfy ghiugg guii

Answered by areebakhan1716
1

I got this much only. this question is too long

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