Hindi, asked by manisharajpoot312, 8 months ago

सत्रीय कार्य
(पूरे पाठ्यक्रम के सभी खण्डो पर आधारित)
पाठ्यक्रम कोड: एम एच डी-4
सत्रीय कार्य कोड: एम एच डी-4/टी एम ए/2020-2021
1) निम्नलिखित अवतरणों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
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क) समष्टि में ही व्यष्टि रहती है। व्यक्तियों से ही जाति बनती है। विश्व - प्रेम सर्वभूत-हित-कामना परम धर्म
है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो इस अपने ने क्या अन्याय किया है जो इसका
वहिष्कार हो?​

Answers

Answered by sunitaraninarangwalk
1

Explanation:

मैं इस पर विश्वास नहीं करता कि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति करें और उसके आसपास के लोग दुख में रहें। मैं अद्वैत में विश्वास करता हूँ । मैं व्यक्ति तथा वस्तुतः सभी जीवित प्राणियों की मूलभूत एकता में विश्वास करता हूँ । अतः मेरा विश्वास है कि यदि एक व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति करता है तो पूरा विश्व भी उसके साथ उन्नत करता है, और यदि एक व्यक्ति का पराभव होता है तो पूरे विश्व का उतना ही पराभव होता है।

कोई भी एक ऐसा गुण नहीं है, जिसका लक्ष्य सिर्फ एक व्यक्ति के कल्याण तक सीमित हो, अथवा जो एक व्यक्ति के कल्याण से संतुष्ट हो जाए। इसकी विपरीत स्थिति भी सत्य है कि ऐसा एक भी नैतिक दोष नहीं है जो, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, वास्तविक दोषी के अतिरिक्त दूसरों को भी प्रभावित ना करें। अतः एक व्यक्ति का अच्छा या बुरा होना सिर्फ उससे जुड़ा सरोकार नहीं है बल्कि यह पूरे समाज या कहें पूरे विश्व की चिंता का विषय है।

वैसे तो प्रकृति में काफी विकर्षण है पर यह टिकी आकर्षण पर ही है। आपसी प्यार ही प्रकृति को बनाए हुए हैं। व्यक्ति विनाश के आधार पर जीवित नहीं रह सकता है। स्वयं से प्यार अनिवार्य रूप से दूसरों के प्रति सम्मान हेतु प्रेरित करता है। राष्ट्र आबद्ध है क्योंकि इसे बनाने वाले सभी लोग एक दूसरे के प्रति सम्मान रखते हैं एक समय ऐसा आएगा जब राष्ट्र के कानून का विस्तार पूरे ब्रह्मांड पर हो जाएगा जैसे कि हमने पारिवारिक कानून को विस्तारित करके राष्ट्र बनाए जो कि एक बड़ा परिवार ही है।

मानवता में कोई अलगाव नहीं है, क्योंकि नैतिकता के नियम सभी पर एक समान लागू होते हैं। भगवान की नजर में सभी मानव बराबर हैं। यहाँ पर वर्ण, प्रस्थिति आदि जैसे आधारों से सृजित भिन्नता तो है पर जो मनुष्य प्रस्थिति में जितना ही ऊंचा है उसकी उतनी ही अधिक जिम्मेदारी भी है।

(1) लेखक कहता है कि किसी व्यक्ति का अच्छा या बुरा होना सिर्फ उसकी नहीं बल्कि पूरे समाज के सरोकार का विषय है। अपनी बात पर बल देने के लिए लेखक ने उद्धरण में निम्नलिखित विकल्पों में से कौन से तर्क का प्रयोग नहीं किया है? *

व्यक्ति तथा सभी जीवित प्राणियों की मूलभूत एकता

प्रकृति परस्पर प्यार से चलती है और मनुष्य विनाश से जीवित नहीं रह सकता।

ऐसा एक भी नैतिक दोष नहीं है जो कई दूसरे व्यक्तियों को प्रभावित ना करे।

उपर्युक्त में से कोई नहीं

 

This is a required question

(2) उद्धरण में दिए गए विवरण के अनुसार निम्नलिखित में से कौन अद्वैत की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या करता है? *

इसका अर्थ है- मानवता में परस्पर स्नेह

आकर्षण के बल के आधार पर विश्व का सह अस्तित्व।

इसका अर्थ है- सभी जीव रूपों के साथ मनुष्य की एकरूपता।

उपर्युक्त सभी

(3) निम्नलिखित में से कौन सी अभिव्यक्ति /अभिव्यक्तियां उद्धरण में दी गई है/ हैं-1. मनुष्य बराबर हैं और उनके बराबर के अधिकार और जिम्मेदारियां हैं। 2. एक व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति दूसरों को प्रभावित नहीं करती है। *

केवल 1

केवल 2

1 और 2 दोनों

न तो 1 न ही 2

(4) उद्धरण से निम्नलिखित में से कौन सा महत्वपूर्ण संदेश और मुख्य विचार संप्रेषित होता है- 1. परिवार और ब्रह्मांड के कानून राष्ट्र तक विस्तारित हो सकते हैं 2. प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी उसकी प्रायश्चित के अनुपात में होती है। 3. एक व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति दूसरों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है। 4. एक व्यक्ति के गुण अवगुण बड़े परिप्रेक्ष्य में समाज और विश्व को प्रभावित करते हैं। 5. मनुष्य और मनुष्य के बीच मूलभूत अंतर होता है। *

1, 2, 3

2, 3, 4

3, 4, 5

सभी

5. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है- *

आध्यात्मिक उन्नति

मनुष्य के गुण-अवगुण

मनुष्य के गुण-अवगुण का प्रभाव

मनुष्य के गुण अवगुण का मानवता एवं प्रकृति पर प्रभाव

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