Hindi, asked by XxXItzPrincessXxX, 9 months ago

सत्संग से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। यदि कोई मनुष्य इस जीवन में दुखी रहता है
तो कम से कम कुछ समय के लिए श्रेष्ठ पुरुषों की संगति में वह अपने सांसारिक दुखों को विस्मरण कर देता है।महापुरुषों के उपदेश सदैव सुख-शांति प्रदान करते हैं, दुख के समय मनुष्य उनका स्मरण करके धैर्य प्राप्त करता है। सत्संग में लीन रहने वाले मनुष्य को दैवी दुखों का कोई भय नहीं रहता। वह अपने को ईश्वर में लीन समझता है, जिससे दुखों का कोई कारण ही शेष नहीं रह जाता।
सत्संग के प्रभाव से धैर्य-लाभ होता है, जिससे मन में क्षमा की शक्ति अपने आप आ जाती है। क्षमा सभी प्रकार के
दुर्गुणों को विनष्ट कर देती है और मन को शांति और संतोष प्रदान करती है। इसी प्रकार अन्य अनेक लाभ सत्संग द्वारा प्राप्त होते हैं। संगति का प्रभाव मन पर अनिवार्यतः पड़ता है, अत: सत्संग में संलग्न रहने वाला मनुष्य अनिवार्य रूप से सदाचारी होता है। हमें भी सदैव सज्जनों की संगति करनी चाहिए और दुर्जनों से दूर रहना चाहिए। दुर्जनों के संग से उत्कृष्ट गुणों वाला मनुष्य
भी बिगड़ जाता है। कहा भी है-काजर की कोठरी में कैसो ह सयानो जाए
एक रेख काजर को लागि है पै लागि है।
[CBSE 2016)
प्रश्न-(क) सत्संग में लीन रहने वाले मनुष्यों को दैवी दुखों का भय क्यों नहीं रहता?
(ख) दुख के समय मनुष्य धैर्य कैसे प्राप्त करता है?
(ग) लेखक के अनुसार क्षमा का क्या अर्थ है?
(घ) लेखक दुर्जनों से दूर रहने को क्यों कहता है?
(ङ) सत्संगति से मनुष्य सदाचारी कैसे बनता है?
(च) सत्संग से कौन-से सुख प्राप्त होते हैं?

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Answers

Answered by XxMissPaglixX
20

{\huge{\mathtt{\pink{AnSwEr:-}}}}

(क)सत्संग में लीन रहने वाले मनुष्य अपने आप को परमात्मा में लीन समझते हैं इसीलिए उससे दिव्य दुखी दुखों का कोई भय अनुभव नहीं होता ।

(ख)दुख के समय मनुष्य को महापुरुषों के उपदेश सुख शांति प्रदान करते हैं जिन से उसे ध्यान दें प्राप्त होता है सत्य संगीत से ही उसके मन में दूसरों के प्रति क्षमा और उदारता आ जाती है परिणाम अनुसार बहुत धैर्य प्राप्त करता है ।

(ग)शमा का अर्थ है दूसरों की गलतियों का बुरा ना मानना तथा उनके प्रति सद्भावना में कमी ना आने देना ।

(घ)लेखक दर्जनों से दूर इसीलिए रहना चाहता है क्योंकि उसके संग संग रहकर * व्यक्ति भी बिगड़ जाते हैं एक दोहे में स्पष्ट कहा गया है कि काजल की कोठरी में रहने वालों पर काजल का अवसर अवश्य में होता है वह अपनी कुसंगति से बच नहीं पाता ।

(ड़)प्राइस सज्जन लोग ही सत्य संघ मैं रुचि लेते हैं इसीलिए उनके साथ रहकर दुर्गुण मनुष्य भी सदाचारी बन जाता है सत्संग में रहते रहते उसके लाभ स्वयं में मिलने लगते हैं ।

(च)सत्संग से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं ।

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Answered by XxCuteAngelxX
42

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(क)सत्संग में लीन रहने वाले मनुष्य अपने आप को परमात्मा में लीन समझते हैं इसीलिए उससे दिव्य दुखी दुखों का कोई भय अनुभव नहीं होता ।

(ख)दुख के समय मनुष्य को महापुरुषों के उपदेश सुख शांति प्रदान करते हैं जिन से उसे ध्यान दें प्राप्त होता है सत्य संगीत से ही उसके मन में दूसरों के प्रति क्षमा और उदारता आ जाती है परिणाम अनुसार बहुत धैर्य प्राप्त करता है ।

(ग)शमा का अर्थ है दूसरों की गलतियों का बुरा ना मानना तथा उनके प्रति सद्भावना में कमी ना आने देना ।

(घ)लेखक दर्जनों से दूर इसीलिए रहना चाहता है क्योंकि उसके संग संग रहकर * व्यक्ति भी बिगड़ जाते हैं एक दोहे में स्पष्ट कहा गया है कि काजल की कोठरी में रहने वालों पर काजल का अवसर अवश्य में होता है वह अपनी कुसंगति से बच नहीं पाता ।

(ड़)प्राइस सज्जन लोग ही सत्य संघ मैं रुचि लेते हैं इसीलिए उनके साथ रहकर दुर्गुण मनुष्य भी सदाचारी बन जाता है सत्संग में रहते रहते उसके लाभ स्वयं में मिलने लगते हैं ।

(च)सत्संग से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं ।

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