सत्संगति (essay)
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सत्संगति का अर्थ - सत्संगति का अर्थ है-'अच्छी संगति'। वास्तव में 'सत्संगति' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-'सत्' और संगति अर्थात् 'अच्छी संगति'। 'अच्छी संगति' का अर्थ है-ऐसे सत्पुरूषों के साथ निवास जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएँ।
अच्छे लोगों की संगति से आप अपने पढ़ाई के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ सकते हैं और पढ़ाई के क्षेत्र में आगे बढ़कर अपने शिक्षक अपने माता-पिता का नाम रोशन कर सकते हैं । अच्छे लोगों की संगति से पढ़ाई के क्षेत्र में बड़ी बड़ी उपलब्धियों को हासिल कर सकते हैं । सत्संगति यदि हम करते हैं तो हमारी सकारात्मक सोच बनती है ।
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सत्संगति की वजह से ही व्यक्ति में धर्मनिष्ठा, कर्त्तव्यनिष्ठा और सदभावना जैसे गुणों का उदय होता है। जीवन को परम सत्य के मार्ग पर ले जाने के लिए सत्संगति का साथ हमारी जिंदगी में होना बेहद जरुरी है।
सत्संगति का प्रभाव
मानवी एक सामाजिक प्राणी होने के कारण कई आपसी रिश्तों से जुड़ा हुआ है। अगर एक बुद्धिमान और सर्तक व्यक्ति भी कुसंगति के संपर्क में आता है, तो उस पर उसका बुरा प्रभाव जरूर पड़ता है। हमारे जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्संगति का बड़ा योगदान रहता है। इसका प्रभाव एक सामान्य इंसान को भी महान बना देता है।
सत्संगति से हमें आदर और सत्कार मिलते है और हमारी कीर्ति विस्थापित होती है। जैसे पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति सत्मार्ग की ओर चलने लगता है। भारत में प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा लिये गुरुकुल भेजा जाता था क्योंकि वे बचपन से ही सत्संगति के प्रभाव में रहे और भविष्य में वे सदा सही मार्ग का चुनाव करे।
सत्संगति के उदाहरण
मनुष्य के दिमाग पर सत्संगति का प्रभाव जरूर पड़ता है। सत्संगति का असर ना सिर्फ मनुष्य पर बल्कि प्राणी और वनस्पति पर भी होता है।अगर आम की टोकरी में एक आम बिगड़ा हुआ होता है, तो वो सारे आम को बिगाड़ देता है। सत्संगति की वजह से ही हनुमान और सुग्रीव जैसे सामान्य वानर भी आज अविस्मरणीय बन गए है। एक कुसंगति हमारे सारे जीवन को नष्ट कर देती है और एक सत्संगति हमारे जीवन को उन्नति की राह दिखाती है।
इसके कई उदाहरण आपको पुराणिक कथा वार्ता में और हमारी आसपास भी नजर आएंगे। महाकाव्य रामायण के सर्जक वाल्मीकि पहले एक डाकू थे। नारद जी के सत्संगति की वजह से आज उनका नाम भारत के अग्रीम ऋषि मुनिओं में शामिल है। गौतम बुद्ध की सत्संगति ने खूंखार डाकू अंगुलिमाल का जीवन ही बदल गया और उन्होंने बौद्ध धर्म की राह पकड़ ली।
सत्संगति का लाभ
वैसे तो सत्संगति के अनगिनत लाभ है। सत्संगति से ही हमारे विचारों को सही दिशा मिलती है। सत्संगति हमारे जीवन की नाव को कभी तूफान में डूबने नहीं देती। सत्संगति में रहकर हम चरित्रवान बन सकेंगे और ज़िंदगी में कभी गलत रास्ता नही चुनेंगे। कुसंगति एक विष का काम करती है जबकि सत्संगति एक औषध का काम करती है। सत्संगति के कारण ही व्यक्ति में एक आत्मविश्वास पैदा होता है।
इस से जीवन की बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना हम दृढ़तापूर्वक कर सकते है। सत्संगति व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। व्यक्ति के वाणी और आचरण में सत्य का प्रभाव दिखता है। कुसंगति हमें अँधेरे की खाई की ओर ले जाएगी और सत्संगति का साथ हमें प्रकाश के शिखर पर पहुंचाएगी। सत्संगति के कारन हम सकारात्मक सोच सकते है और यही सोच धीरे धीरे अच्छे कार्य में परावर्तित होती है। जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाती है।
निष्कर्ष
सत्संगति हमारे संपूर्ण जीवन की आधार शिला है। कुसंगति हमारे जीवन को तहसनहस कर सकती है। सत्संगति की छाया में मन शांत, स्वच्छ और निर्मल बनता है। हमारे जीवन की उन्नति और एक बेहतर व्यक्त्वि के लिए हमें सदैव बुद्धिमान एवं सज्जन व्यक्तियों की छत्रछाया में रहना चाहिए।
आखिर यह हम पर है की हमें किस प्रकार संगती का चुनाव करना चाहिए। सोचिये अगर रानी कैकई अपनी दासी मंथरा की कुसंगति आकर भगवान राम को वनवास दिला सकती है, तो आखिर तो हम एक सामान्य इंसान है।