Hindi, asked by Faiqa93, 10 months ago

सत्संगति का महत्व
संकेत बिंदु -
→ सत्संगति का अर्थ
→ सत्संगति का प्रभाव
→ सत्संगति से मानव कल्याण
→ कुसंगति की हानियाँ
→ उप संहार

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Answered by amit7079
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Answer:

सत्संगति का महत्व पर निबंध। Satsangati ka mahatva nibandh

Satsangati ka mahatva nibandh

प्रस्तावना - सत्संगति से ही मनुष्य में गुण-दोष आते हैं।’ मनुष्य का जीवन अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होता है। मूलरूप से मानव के विचारों और कार्यों को उसके संस्कार व वंश-परम्पराएँ ही दिशा दे सकती हैं। यदि उसे स्वच्छ वातावरण मिलता है तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है और यदि वह दूषित वातावरण में रहता है तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं।

संगति का प्रभाव - मनुष्य जिस वातावरण एवं संगति में अपना अधिक समय व्यतीत करता है उसका प्रभाव उस पर अनिवार्य रूप से पड़ता है। मनुष्य ही नहीं वरन् पशुओं एवं वनस्पतियों पर भी इसका असर होता है। मांसाहारी पशु को यदि शाकाहारी प्राणी के साथ रखा जाए तो उसकी आदतों में स्वयं ही परिवर्तन हो जाएगा। यही नहीं मनुष्य को भी यदि अधिक समय तक मानव से दूर पशु-संगति में रखा जाए तो वह भी शनैः-शनैः मनुष्य-स्वभाव छोड़कर पशु-प्रवृत्ति को ही अपना लेगा।

सत्संगति का अर्थ - सत्संगति का अर्थ है-‘अच्छी संगति’। वास्तव में ‘सत्संगति’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-‘सत्’ और संगति अर्थात् ‘अच्छी संगति’। ‘अच्छी संगति’ का अर्थ है-ऐसे सत्पुरूषों के साथ निवास जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएँ।

सत्संगति से लाभ - सत्संगति के अनेक लाभ हैं। सत्संगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। सत्संगति के प्रभाव से पापी पुण्यात्मा और दुराचारी सदाचारी हो जाते हैं। ऋषियों की संगति के प्रभाव से ही वाल्मीकि जैसे भयानक डाकू महान कवि बन गए तथा अंगुलिमाल ने महात्मा बुद्ध की संगति में आने से हत्या¸लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचार के मार्ग को अपनाया। सन्तों के प्रभाव से आत्मा के मलिन भाव दूर हो जाते हैं तथा वह निर्मल बन जाती है।

सत्संगति एक प्राण वायु है जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है। दयावान¸ विनम्र¸ परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है। इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि

‘सठ सुधरहिं सत्संगति पाई

पारस परस कुधातु सुहाई।’

एक साधारण मनुष्य भी महापुरूषों¸ ज्ञानियों¸ विचारवानों एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊँचे स्तर को प्राप्त करता है। वानरों-भालुओं को कौन याद रखता है लेकिन हनुमान¸सुग्रीव¸अंगद¸जाम्बवन्त आदि श्रीराम की संगति पाने के कारण अविस्मरणीय बन गए।

सत्संगति ज्ञान प्राप्त की भी सबसे बड़ी साधिका है। इसके बिना तो ज्ञान की कल्पना तक नहीं की जा सकती

‘बिनु सत्संग विवेक न होई।’

जो विद्यार्थी अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहते हैं उनका चरित्र श्रेष्ठ होता है एवं उनके सभी कार्य उत्तम होते हैं। उनसे समाज एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

कुसंगति से हानि - कुसंगति से लाभ की आशा करना व्यर्थ है। कुसंगति से पुरूष का विनाश निश्चित है। कुसंगति के प्रभाव से मनस्वी पुरूष भी अच्छे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। कुसंगति में बंधे रहने के कारण वे चाहकर भी अच्छा कार्य नहीं कर पाते। कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा। जो छात्र कुसंगति में पड़ जाते हैं वे अनेक व्यसन सीख जाते हैं जिनका प्रभाव उनके जीवन पर बहुत बुरा पड़ता है। उनके लिए प्रगति के मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं। उनका मस्तिष्क अच्छे-बुरे का भेद करने में असमर्थ हो जाता है। उनमें अनुशासनहीनता आ जाती है। गलत दृष्टिकोण रखने के कारण ऐसे छात्र पतन के गर्त में गिर जाते हैं। वे देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व भी भूल जाते हैं।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है-‘कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। किसी युवा पुरूष की संगति बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-पर-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी’

उपसंहार - सत्संगति का अद्वितीय महत्त्व है जो सचमुच हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है। सत्संगति एक पारस है जो जीवनरूपी लोहे को कंचन बना देती है। मानव-जीवन की सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संगति आवश्यक है। इसके माध्यम से हम अपने लाभ के साथ-साथ अपने देश के लिए भी एक उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेंगे|

Answered by kavitamittal123
21

Explanation:

above answer is correct

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