Hindi, asked by premkr01234s, 9 months ago

सत्संगति पर अनुच्छेद(120-150words)​

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Answered by shruti30021
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मनुष्य के चरित्र-निर्माण में संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है । हमारे शास्त्रों में सत्संगति को बहुत महत्त्व दिया गया है । सत्संगति अर्थात सच्चरित्र व्यक्तियों के सम्पर्क में रहना, उनसे सम्बन्ध बनाना । सचरित्र व्यक्तियों, सज्जनों, विद्वानों आदि की संगति से साधारण व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है ।

सत्संगति मनुष्य को सदैव धर्म-कर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है और बुराइयों से बचाव के दिशा-निर्देश देती है । सत्संगति से ही मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और उसका जीवन सार्थक बनता है । सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने की सामर्थ्य होती है ।

सत्संगति वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्‌गुणों का संचार करती है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक अबोध होता है । उस पर सर्वप्रथम परिवार की संगति का प्रभाव पड़ता है । बड़ा होकर बालक घर से बाहर निकलकर विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करता है और शिक्षकों, मित्रों, आदि की संगति का उस पर बहुत प्रभाव पड़ता है ।

धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ मनुष्य जीवन का अर्थ समझने का प्रयास करता है और उसकी संगति के अनुसार ही जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बनता है । सत्संगति मनुष्य को उच्च विचारों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है और उसके चरित्र-बल को बढ़ाती है जबकि कुसंगति में मनुष्य के चरित्र में निरन्तर गिरावट आती है और मनुष्य पथभ्रष्ट होकर स्वयं अपना बहुमूल्य जीवन तबाह कर लेता है ।

मानव-जीवन ईश्वर की अमूल्य देन है । मनुष्य इस पृथ्वी पर धर्म-कर्म के पथ पर चलते हुए मानव-समाज का विकास करने के लिए जन्म लेता है । सत्संगति जीवन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि मानव-समाज उन्नति कर सके ।

स्पष्टतया कुसंगति मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाती है और सपूर्ण मानव-जाति के लिए अहितकर सिद्ध होती है । कुसंगति से मनुष्य में अनेक बुराइयों जन्म लेने लगती हैं । कुसंगति मनुष्य को व्यसनी, व्यभिचारी बना देती है और ऐसे व्यक्ति मानव-समाज की सुख-शांति भंग करने के साथ स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं ।

स्पष्टतया सद्‌विचारों सज्जनों से ही मानव-समाज की सुख-शांति स्थिर रह सकती है । सद्‌विचार मनुष्य को कर्त्तव्यों का पालन करना सिखाते हैं और उनसे मनुष्य में संघर्ष की भावना जन्म लेती है । संघर्ष से ही मनुष्य उन्नति करता है और उसे सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं ।

सद्‌विचारों से मनुष्य को मर्यादा में रहने की प्रेरणा मिलती है और मर्यादा में रहकर ही मनुष्य समाज की सुख-शांति बनाए रख सकता है । दूसरी ओर कुसंगति से मनुष्य की शक्ति क्षीण होती है । उसमें संघर्ष की भावना समाप्त होने लगती है और वह कामचोर बन जाता है ।

ऐसे व्यक्ति सदैव दूसरों की धन-सम्पत्ति पर आनन्द उठाने को ही जीवन समझते हैं और मर्यादाएँ लांघते हुए वे समाज के लिए खतरा बनते रहते हैं । चोर, डकैत, धोखेबाज बुराई के रास्ते पर अनेक खतरे उठाने के लिए तैयार रहते हैं, परन्तु उनमें ईमानदारी से परिश्रम करने की क्षमता नहीं रहती । वे एक बार में अधिकाधिक धन लूटकर महीनों आराम से रहने को ही जीवन का आनन्द समझते हैं ।

ऐसे लोग समाज की सुख-शांति तो भंग करते ही हैं, अंतत: अकाल मृत्यु का भी शिकार बनते हैं । अवसर मिलने पर लोग चोर, डकैतों पर हमला कर देते हैं अथवा वे पुलिस मुठभेड़ में मारे जाते हैं । सार्थक जीवन के लिए मनुष्य को सत्संगति र्का ही आवश्यकता होती है ।

सज्जनने र्को संगति में ही मनुष्य को जीवन के वास्तविक अर्थ का ज्ञान होता है । साधुजनों की प्रेरणा से ही मनुष्य जीवन के मृत्य को पहचानता है । वह सदैव बुराई के रास्ते से बचा रहता है ताकि अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट होने से बचा सके । सत्संगति से ही मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि यह जीवन बार-बार प्राप्त नहीं होता ।

सौभाग्य से प्राप्त हुए जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्य के मार्ग पर चलना आवश्यक है । सत्य के मार्ग पर चलकर ही मनुष्य महान कार्य करता है और मानव-समाज को दिशा देता है । अत: समाज के विकास के लिए सत्संगति महत्त्वपूर्ण है ।

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