सत्संगति पर अनुच्छेद
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Explanation:
मनुष्य के चरित्र-निर्माण में संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है । हमारे शास्त्रों में सत्संगति को बहुत महत्त्व दिया गया है । सत्संगति अर्थात सच्चरित्र व्यक्तियों के सम्पर्क में रहना, उनसे सम्बन्ध बनाना । सचरित्र व्यक्तियों, सज्जनों, विद्वानों आदि की संगति से साधारण व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है ।
सत्संगति मनुष्य को सदैव धर्म-कर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है और बुराइयों से बचाव के दिशा-निर्देश देती है । सत्संगति से ही मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और उसका जीवन सार्थक बनता है । सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने की सामर्थ्य होती है ।
सत्संगति वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्गुणों का संचार करती है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक अबोध होता है । उस पर सर्वप्रथम परिवार की संगति का प्रभाव पड़ता है । बड़ा होकर बालक घर से बाहर निकलकर विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करता है और शिक्षकों, मित्रों, आदि की संगति का उस पर बहुत प्रभाव पड़ता है ।
धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ मनुष्य जीवन का अर्थ समझने का प्रयास करता है और उसकी संगति के अनुसार ही जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बनता है । सत्संगति मनुष्य को उच्च विचारों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है और उसके चरित्र-बल को बढ़ाती है जबकि कुसंगति में मनुष्य के चरित्र में निरन्तर गिरावट आती है और मनुष्य पथभ्रष्ट होकर स्वयं अपना बहुमूल्य जीवन तबाह कर लेता है ।
मानव-जीवन ईश्वर की अमूल्य देन है । मनुष्य इस पृथ्वी पर धर्म-कर्म के पथ पर चलते हुए मानव-समाज का विकास करने के लिए जन्म लेता है । सत्संगति जीवन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि मानव-समाज उन्नति कर सके ।
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सत्संगति से ही मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और उसका जीवन सार्थक बनता है । सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने की सामर्थ्य होती है । सत्संगति वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्गुणों का संचार करती है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक अबोध होता है ।