Hindi, asked by yshagun810, 8 months ago

सत्संगति पर निबंध.....(250-300 शब्दों में)​

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Answered by arshadsayyed3018
48

Explanation:

सत्संगति पर लघु निबंध 200 शब्दों में, Short Essay on Satsangati in 200 words in Hindi

मनुष्य पर जितना प्रभाव उसकी संगती का पड़ता है उतना किसी और बात का नहीं पड़ता. इसलिए भारतीय परंपरा में बचपन से सत्संगति पर बहुत जोर दिया गया है. सही मायनों में देखा जाए तो सत्संगति से संस्कार प्रबल होते हैं और बुरी संगती से चरित्र में दोष उत्पन्न होते हैं.

सत्संगति शब्द “सत्’ अर्थात उत्तम और “संगति” अर्थात साहचर्य (साथ) से मिलकर बना है. यानि उत्तम व्यवहार एवं अच्छे चरित्र वाले लोगों के साथ रहना ही सत्संगति करना है.

सत्संग से सदाचार, धर्मभावना, कर्त्तव्यनिष्ठा और सदभावना आदि गुणों का उदय होता है । सत्संग से आत्मा पुष्ट और पवित्र होती है । सत्संग करने वाला व्यक्ति मन, वचन और कर्म से एक जैसा व्यवहार करता है । उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता । सत्संग की महिमा सभी संतों ने गाई है । मन की स्व्छता बिना सत्संग के नहीं आ सकती।

कुसंगति का मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । कुसंगति से सदा हानि ही होती है । मनुष्य कितना ही सतर्क और सावधान रहे कुसंगति काजल कि कोठरी के समान है । सत्संग के अनेक साधन हैं । सभी धर्मों की पुस्तकें सत्संग पर बल देती हैं । सत्संग ही कल्याण मार्ग है । अतः सभी को सत्संग मार्ग पर चलना चाहिए ।

सत्संगति पर 150 शब्दों में निबंध, Essay on Satsangati in 150 words

जीवन में हमें हर समय किसी न किसी मित्र या साथी की आवश्यकता ज़रूर होती है। हमारे मित्र की अच्छे-बुराई का प्रभाव हमारे ऊपर अवशय पड़ता है. मित्र के बिना जीवन अधूरा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी मित्रता कुसंग लोगों के साथ रखे। एक कुसंग संगति का मित्र विष के समान होता है और एक सत्संगति का मित्र औषधि।

सत्संगति में रहकर हम चरित्रवान बन सकते है। अगर हम सत्संगति में रहते है तो हम अपनी ज़िंदगी में कभी गलत रास्ता नही पकड़ेंगे। एक सत्संगति वाला मित्र हमारा मार्गदर्शक होता है।

आज कल सत्संगति पाना बहुत कठिन होता जा रहा है। हमें दोस्ती करते हुए यह नही सोचना चाहिए कि वह गरीब है या अमीर है। हमें दूसरे व्यक्ति की भावनाओँ को समझ कर ही उससे दोस्ती करनी चाहिए क्योंकि हो सकता है कि वो व्यक्ति अच्छे स्वाभाव एवं चरित्र वाला न हो।

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Answered by shikharpandit86
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Explanation:

मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है ।

तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके । यदि वह ऐसा न कर सका तो शीघ्र ही बुरा बन जाता है ।

बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी आदर नहीं होता है । उसका थोड़ा-सा भी बुरा कर्म उसके जीवन के लिए त्रिशूल बन जाता है । फिर वह गले-सड़े हुए फल के समान ही अपने जीवन का अन्त कर डालता है । अत: प्रत्येक मानव को कुसंगति से बचना चाहिए ।

उसे अच्छाई, बुराई, धर्म – अधर्म, ऊँच-नीच, सत्य- असत्य और पाप-पुण्यों में से ऐसे शस्त्र को पकड़ना चाहिए जिसके बल पर वह अपना जीवन सार्थक बना सके ।

इस निश्चय के उपरान्त उसे अपने मार्ग पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए । सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है । उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है । इस मार्ग पर चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है । अत: उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए ।

कुसंगति तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है । इसकी संतानें सत्संगति का अनुकरण करने वाले को अपने जाल में फँसाने का प्रयत्न करती है । महाबली भीष्म, धनुर्धर द्रोण और महारथी शकुनि जैसे महापुरुष भी इसके मोह जाल में फंस कर पथ विचलित हो गए थे । उनके आदर्शों का तुरन्त ही हनन हो गया था ।

अतत: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह चन्दन के वृक्ष के समान अटल रहे । जिस प्रकार से विषधर रात-दिन लिपटे रहने पर भी उसे विष से प्रभावित नहीं कर सकते, उसी प्रकार सत्यंगति के पथगामी का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं ।

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