Hindi, asked by yo357, 3 months ago

सत्संगति सब विधि हितकारी पर निबंध​

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Answered by gauritondwal
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मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है । तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके ।सत्संगति का अभिप्राय – सत्संगति का आशय है – अच्छी संगति, अच्छा साथ, भले साथी | संगति घर से ही आरंभ हो जाती है | यदि घर के सदस्य भले हैं सत्संगति घर से ही आरंभ हो जाती है | घर के बाहर व्यक्ति जिन भले लोगों के बीच में उठता-बैठता है, उसे सत्संगति करते हैं |

सुसंगति और कुसंगति के अच्छे-बुरे परिणाम – सत्संगति हो या कुसंगति-दोनों का प्रभाव अवश्य होता है | सत्संगति से मनुष्य अच्छे मार्ग पर चलता है | उसकी सुख प्रवृतियाँ जाग्रत होती हैं | उसके देवता जाग्रत होते हैं | वह अच्छे विचार और व्यवहार को देख-देखकर अच्छा आचरण करता है | इसके विपरीत कुसंगति से मनुष्य की राक्षसी प्रवुर्तियाँ जाग्रत हो उठती हैं | वह विलासी, अहंकारी तथा स्वेच्छाचारी बनने लगता है | सिगरेट, शराब, जुआ, आवारागर्दी कुंसंगती से ही बढ़ते हैं |सत्संगति हितकारी कैसे ? – मनुष्य अच्छे लोगों में रहकर अच्छा आचरण करता है | वह सत्पुरुषों में अपना मान-सम्मान बढ़ाना चाहता है | भगतसिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में आए तो क्रांतिकारी बन गए | यदि वे आवारा-बदचलन साथियों के बीच रहते तो शायद वैसे ही ढल गए होते | इस प्रकार सत्संगति ने उसके जीवन की दिशा बदल डाली | वे भारतवर्ष के चहेते बन गए | लोग उन्हें अब भी बलिदानी और क्रांतिकारी वीर के रूप में याद करते हैं |

सुसंगति की प्राप्ति और कुसंगति को छोड़ने के उपाय – मनुष्य मूलत: पशु है | इसलिए वह पशु-प्रवुर्तियों की ओर अधिक आसानी से झुकता है | कुसंगति में पाँव रखना बहुत सरल होता है किंतु उससे पीछा छुड़ाना बहुत कठिन होता है | मनुष्य की दृढ़ इच्छा-शक्ति ही उसे कुसंगति से बचा सकती है | बार-बार अपने मन को समझने से, विवेक से, अच्छे-बुरे की पहचान से ही कुसंगति से दूर रहा जा सकता है | किंतु जिसके लिए राम और रावण दोनों समान हैं, उसके लिए कीचड़ और कमल भी समान होते हैं | ऐसे लोग कुसंगति में पड़े रहते हैं | जिसे कमल की श्रेष्ठता का बोध होगा, वाही कीचड़ के बीच रहकर भी कमल जैसा खिल सकेगा | परंतु केवल बोध भी प्रभावी नहीं होता | दृढ़ इच्छाशक्ति आवश्यक होती है | यह इच्छाशक्ति प्रभु-कृपा से प्राप्त होती है | जिसके मन में सत्संगति की इच्छा नहीं होती, वह अभागा होता है | दुर्योधन कहता है – ‘मुझे पता है कि धर्म-अधर्म किया है ? परंतु क्या करूँ-धर्म ओर मेरी प्रवुर्ती नहीं है |’

सुसंगति सब सुखों का मूल – सत्संगति से सब प्रकारक के सुख प्राप्त होते हैं | अच्छी संगति में रहने वाला-मनुष्य पाप-बोध से रहित होता है | उसकी आत्मा स्वच्छ होती है | इसलिए उसके चेहरे पर दुःख, पश्चाताप, निराशा, अदि दुर्भाव नहीं होते | वह सदा अताम्विश्वास और उल्लास से खिल-खिला रहता है |

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Answered by Anonymous
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मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है । तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके ।

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