सत्सङ्गतिः जीवने किं किं करोति ?
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सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।" - ...
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।।
सज्जनों की संगति से व्यक्ति का केवल उपकार ही होता है, इसी कथ्य को कवि ने बड़ी सुन्दरता से इस श्लोक में बताया है।
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I hope my answer is correct...
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सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।" - ...
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।।
सज्जनों की संगति से व्यक्ति का केवल उपकार ही होता है, इसी कथ्य को कवि ने बड़ी सुन्दरता से इस श्लोक में बताया है।
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