सत्ता के क्षेतिज वितरण की व्याख्या
की व्याख्या कीनिष्ण
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सत्ता की साझेदारी में सत्ता के अनेक रूप होते हैं, जिनको अपनाकर सत्ता में साझेदारी स्थापित की जाती है। सत्ता का क्षैतिज वितरण उनमें से ही एक रूप है। सत्ता के क्षैतिज वितरण में सरकार के विभिन्न अंग होते हैं, जो समान स्तर पर कार्य करते हैं और एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। इनमें सत्ता का क्षैतिज अर्थात समानंतर वितरण होता है।
कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका आदि सरकार के ही अंग है और इनमें सत्ता का क्षैतिज वितरण रहता है। इससे सरकार का कोई भी एक अंग को जितनी शक्ति मिली हुई है, वह उसी के अनुसार अपना कार्य करता है। इससे सरकार का कोई भी एक अंग निरंकुश नहीं बन पाता और उसके निरंकुश होने की स्थिति में दूसरा अंग उस पर अंकुश लगा सकता है। इससे सत्ता में संतुलन स्थापित रहता है और लोकतंत्र कायम रहता है।
लोकतंत्र में संघीय व्यवस्था के अंतर्गत सत्ता का क्षैतिज वितरण एक आम और लोकप्रिय स्वरूप है। इस तरह के वितरण में कार्यपालिका सत्ता का मुख्य उपयोग करती है, वह न्यायपालिका की नियुक्ति भी करती है और विधायिका के माध्यम से कानून भी बनाती है। न्यायपालिका उन्हीं कानूनों का सहारा लेकर कार्यपालिका और विधायिका पर अंकुश रखती है। इस तरह शक्ति का बंटवारा सभी अंगों में समान रूप से हो जाता है और कोई भी एक अंग असीमित शक्ति वाला नही बन पाता।
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लोकतंत्र में शासन के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। उदाहरण के लिए; विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा। इस प्रकार के बँटवारे में सत्ता के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। इसलिए इस प्रकार के बँटवारे को क्षैतिज बँटवारा कहते हैं।