सतंतु का शब्द संपदा लिखीए
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आजकल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी भारत के 500-1000 के प्रतिबंधित नोटों ने हलचल मचा रखी है. जैसा कि हमेशा होता है, किसी भी परिवर्तन या नए कदम से जहां बहुत-से लोग विरोध की राजनीति में संलिप्त हो जाते हैं, वहीं बहुत-से लोग इस कदम को क्रांतिकारी मानकर थोड़ी-सी असुविधा झेलने को सहर्ष तैयार हो जाते हैं. क्या आप जानते हैं, कि एक ऐसी सम्पदा भी है, जिसे प्रतिबंधित नहीं किया गया है, फिर भी उसे स्व प्रतिबंधित किया जाए, तो हम सबके हक में हितकारी होगा. उस सम्पदा का नाम है- ‘शब्द सम्पदा”.
आपको यह तो याद होगा- ”तलवार के घाव भर जाते हैं, शब्दों के नहीं.” शब्द जो हमेशा हमारे साथी हैं, उन्हीं शब्दों के आदान-प्रदान से रिश्ते बनते हैं, भावनाएं प्रकट होती हैं और हमारा-आपका नाता बनता है. कभी इनमें कटुता आ जाती है तो कभी प्रेम. संत कबीर कहते हैं –
”एक शब्द सुखरास है, एक शब्द दुखरास,
एक शब्द बंधन करै, एक शब्द गलफांस.”
वाणी की इस द्वैधी प्रकृति को संतों ने बड़ी गहनता से अनुभूत किया था, इसलिए उन्होंने वाणी के संयमित उपयोग के प्रति लोगों को सदैव सचेत किया. कन्फ्यूशियस ने कहा है,‘शब्दों को नाप-तोल कर बोलो, जिससे तुम्हारी सज्जनता टपके.’ ऋषि नैषध कहते हैं, ‘मितं च सार वचो हि वाग्मिता’ अर्थात, थोड़ा और सारयुक्त बोलना ही पांडित्य है. शब्दों में घुला रस अमृत की भांति होता है. इस अमृत का स्वाद जिसने एक बार चखा, वह बार-बार इस रस की खोज करता है. जिह्वा की मिठास अनंत की सैर को ले चलती है, परंतु स्वभावतः यह दुर्लभ रस है, बड़ी कठिनाई से उपलब्ध होता है.
इन दिनों जितना बोला जा रहा है, उतना शायद इतिहास में कभी नहीं बोला गया. कौन बोल रहा है, क्यों बोल रहा है, क्या बोल रहा है, समझ में नहीं आ रहा. शब्दों की इतनी फिजूलखर्ची कभी नहीं की गई, जितनी आज की जा रही है. जे. कृष्णमूर्ति ने कहा है, ‘कम बोलो, तब बोलो जब यह विश्वास हो जाए कि जो बोलने जा रहे हो उससे सत्य, न्याय और नम्रता का नाश न होगा.’ इसलिए बोलते समय सतर्क रहना चाहिए. हम बोलकर ऐसे अनेक काम करते हैं, जिनसे हमारे विकास का रास्ता तैयार होता है. हम जैसा बोलेंगे, सामने वाले पर भी उसी के मुताबिक प्रभाव डालेंगे और हमारा बोलना ही उनके मन में हमारी छवि भी निर्धारित करेगा. हमें हर एक शब्द सोच-विचार कर तरीके से पेश करना होगा, ताकि वे शब्द प्रभावित करें.
शब्दों का दुरुपयोग उनका अपमान है. शब्दों को पर्याप्त सम्मान न देकर, उनकी प्रामाणिकता की चिंता न कर हम अपने जीवन का अवमूल्यन करते चलते हैं. इसलिए यह कहना तर्कसंगत होगा, कि ”शब्द सम्पदा ऐसी सम्पदा है, जिसे प्रतिबंधित न होते हुए भी हम प्रतिबंधित मानकर व्यवहार कर सकें, तो हम सबके हित में होगा.
चलते-चलते एक और स्व प्रतिबंध के बारे में बात कर ली जाए. अभी हाल का समाचार है-
शादियों के कारण दिल्ली-गुरुग्राम रोड पर भारी जाम
शादियों का सीजन शुरू हो गया है और इसके कारण सड़कों पर भीड़ काफी बढ़ जाती है. इसी कारण शुक्रवार शाम को दिल्ली-गुरुग्राम रोड पर शादियों के कारण भारी जाम लग गया है. यह जाम पिछले कई घंटे से लगा हुआ है और गुरुग्राम से दिल्ली लौट रहे नौकरीपेशा लोग इसमें फंसे हुए हैं. समय की नज़ाकत को देखते हुए हम कुछ वैकल्पिक स्व प्रतिबंध लगाकर कोई समीचीन हल निकाल सकते हैं. इनमें गाड़ियों की पूलिंग करना, शादियां दिन में करना, ताकि पीक ऑवर्स में लोगों को परेशानी न हो आदि सम्मिलित हो