सत्ता में साझेदारी कैसे लोकतंत्र से जुड़ा हुआ है
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सत्ता में साझेदारी लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक शर्त है। लोकतंत्र का अर्थ ही समानता का भाव लिये होता है, इसलिये सत्ता में साझेदारी के कारण ही लोकतंत्र का स्वरूप मजबूत होता है। सत्ता में साझेदारी का तात्पर्य यह है कि सत्ता में सभी समूहों को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिले। अर्थात सत्ता केवल बहुसंख्यक के हाथ में ही नही रहे बल्कि अल्पसंख्यकों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिलता रहे।
किसी संघीय व्यवस्था में सत्ता के स्वरूप को विभिन्नभागों में बांट दिया जाता है, ताकि सत्ता किसी एक पक्ष के हाथ में ना रहे और अलग-अलग समूह एक दूसरे को नियंत्रित करते रहें। जैसे कि किसी संघीय व्यवस्था में सत्ता को न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका जैसे भागों में बांट दिया जाता है। जिसमें कार्यपालिका का मुख्य कार्य सत्ता का संचालन करना होता है और विधायिका का इस कार्य में उसके लिए माध्यम बनती है। यदि कार्यपालिका निरंकुश हो तो उस पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए विधायिका है। विधायिका और कार्यपालिका दोनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए न्यायपालिका है। न्यायपालिका समान रूप से न्याय करें इसके लिए कार्यपालिका विधायिका में कानून बनाती है। कार्यपालिका जो कानून बनाती है उसका वह दुरुपयोग ना कर सके इसके लिए न्यायपालिका उन कानूनों का सहारा लेकर कार्यपालिका पर नियंत्रण स्थापित करती है। इस तरह लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी का स्वरूप चलता रहता है।
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सत्ता में साझेदारी कैसे जुड़ा हुआ है?
Explanation:
लोकतंत्र माने जनता के द्वारा शासन करना। इसलिए जनता जो भी मिलजुल कर जो भी फैसला लेगी वही लोकतंत्र का आधार होगा। अब जब यहाँ पर जनता की बात अति है तो समानता की बात स्वतः ही आ ही जाएगी जिसमें साझेदारियां भी होंगी ताकि समाज में असमानता न फैले।
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में तीन मौलीं कड़ी हैं; पहला है कार्यपालिका, दूसरा है न्यायपालिका और तीसरा है विधायिका। इन मूल कड़ियों के आपस में सुनियंत्रित ढंग से चलना ही लोकतंत्र की सफलता है। इसलिए इन तीन कड़ियों में साझेदारी होना बहुत ही जरूरी है।