सत्ता में साझेदारी कैसे लोकतंत्र से जुड़ा हुआ है
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आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के निम्न तरीके हैं”
1) सरकार विभिन्न अंगों के बीच सत्ता की साझेदारी:
1) सरकार विभिन्न अंगों के बीच सत्ता की साझेदारी: उदाहरण: विधायिका और कार्यपालिका के बीच सत्ता की साझेदारी।
2) सरकार के विभिन्न स्तरों में सत्ता की साझेदारी:
उदाहरण: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता की साझेदारी।
3) सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी:
3) सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी: उदाहरण: सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण।
4) दबाव समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी: नये श्रम कानून के निर्माण के समय ट्रेड यूनियन के रिप्रेजेंटेटिव से सलाह लेना।
सत्ता में साझेदारी लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक शर्त है। लोकतंत्र का अर्थ ही समानता का भाव लिये होता है, इसलिये सत्ता में साझेदारी के कारण ही लोकतंत्र का स्वरूप मजबूत होता है। सत्ता में साझेदारी का तात्पर्य यह है कि सत्ता में सभी समूहों को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिले। अर्थात सत्ता केवल बहुसंख्यक के हाथ में ही नही रहे बल्कि अल्पसंख्यकों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिलता रहे।
किसी संघीय व्यवस्था में सत्ता के स्वरूप को विभिन्नभागों में बांट दिया जाता है, ताकि सत्ता किसी एक पक्ष के हाथ में ना रहे और अलग-अलग समूह एक दूसरे को नियंत्रित करते रहें। जैसे कि किसी संघीय व्यवस्था में सत्ता को न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका जैसे भागों में बांट दिया जाता है। जिसमें कार्यपालिका का मुख्य कार्य सत्ता का संचालन करना होता है और विधायिका का इस कार्य में उसके लिए माध्यम बनती है। यदि कार्यपालिका निरंकुश हो तो उस पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए विधायिका है। विधायिका और कार्यपालिका दोनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए न्यायपालिका है। न्यायपालिका समान रूप से न्याय करें इसके लिए कार्यपालिका विधायिका में कानून बनाती है। कार्यपालिका जो कानून बनाती है उसका वह दुरुपयोग ना कर सके इसके लिए न्यायपालिका उन कानूनों का सहारा लेकर कार्यपालिका पर नियंत्रण स्थापित करती है। इस तरह लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी का स्वरूप चलता रहता है।