सत्याग्रह पर महात्मा गांधी के विचार-
'कहा जाता है कि "निष्क्रिय प्रतिरोध" दुर्बलों का हथियार है।
लेकिन इस लेख में जिस शक्ति की बात की गई है उसे केवल
ताकतवर ही इस्तेमाल कर सकते हैं। यह निष्क्रिय प्रतिरोध की
शक्ति नहीं है। इसके लिए तो सघन सक्रियता चाहिए। दक्षिण
अफ्रीका का आंदोलन निष्क्रिय नहीं बल्कि सक्रिय आंदोलन
था...।
'सत्याग्रह शारीरिक बल नहीं है। सत्याग्रही अपने शत्रु को कष्ट
नहीं पहुँचाता; वह अपने शत्रु का विनाश नहीं चाहता।
..सत्याग्रह के प्रयोग में दुर्भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता।
'सत्याग्रह तो शुद्ध आत्मबल है। सत्य ही आत्मा का आधार होता
है। इसीलिए इस बल को सत्याग्रह का नाम दिया गया है। आत्मा
ज्ञान से हमेशा लैस होती है। इसमें प्यार की लौ जलती है...।
अहिंसा सर्वोच्च धर्म है...।
'इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत विनाशकारी शस्त्रों के मामले
में ब्रिटेन या यूरोप का मुकाबला नहीं कर सकता। अंग्रेज युद्ध
के देवता की उपासना करते हैं। वे सब हथियारों से लैस हो
सकते हैं, होते जा रहे हैं। भारत में करोड़ों लोग कभी हथियार
लेकर नहीं चल सकते। उन्होंने अहिंसा के धर्म को आत्मसात्
कर लिया है...।'
इसको ध्यान से पढ़ें। जब महात्मा गांधी ने सत्याग्रह
को सक्रिय प्रतिरोध कहा तो इससे उनका क्या आशय था?
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.महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी संधि है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह।(सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह)
गांधी जी ने लार्ड इंटर के सामने सत्याग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की थी-"यह ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा के उपायों के एवज में चलाया जा रहा।' अहिंसा सत्याग्रह दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि सत्य तक पहुँचने और उन पर टिके रहने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है। और गांधी जी के ही शब्दों में "अहिंसा किसी को चोट न पहुँचाने की नकारात्मक (निगेटिव) वृत्तिमात्र नहीं है, बल्कि वह सक्रिय प्रेम की विधायक वृत्ति है।'
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