Hindi, asked by sajjangour2002, 6 months ago


सत्य के अनेक रूप होते है, इस सिद्धान्त को मैं बहुत पसंद करता हूँ। इसी सिद्धान्त ने मुझे एक मुसलमान को उसके अपने दृष्टिकोण से और ईसाई को उसकेस्वयंके दृष्टिकोण से समझना सिखाया है। जिन अंधों ने हाथी का अलग-अलग तरह से वर्णन किया वे सब अपनी दृष्टि से ठीक थे। एक-दूसरे की दृष्टि से सब गलत थे, और जो आदमी हाथी को जानता था उसकी दृष्टि से वे सही भी थे और गलत भी। जब तक अलग-अलग धर्म मौजूद है तब तक प्रत्येक धर्म को किसी विशेष वाह्य चिन्ह की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन जब वाह्य चिंतन केवल आडम्बर बन जाते है अथवा अपने धर्म को दूसरे धर्मों से अलग बताने के काम आते हैं तब वे त्याज्य हो जाते हंै। धर्मों के भ्रातृ-मंडल का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह हिंदू को अधिक अच्छा हिंदू, एक मुसलमान को अधिक अच्छा मुसलमान और एक ईसाई को अधिक अच्छा ईसाई बनाने में मदद करें। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना वह नहीं होनी चाहिए - ईश्वर, तू उन्हें वहीं प्रकाश दे जो तूने मुझे दिया है, बल्कि यह होनी चाहिए - तू उन्हें वह सारा प्रकाश दे जिसकी उन्हें अपने सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यकता है। उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। ​

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Answered by guliamanjit300
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Answer:

सत्य की ताकत इसके लिए उचित शीर्षक है।

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