सत्य की जीत' खण्डकाव्य की कथावस्तु की विशेषताएँ बताइए।
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खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। "खण्ड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खण्ड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है।
प्रबन्धात्मकता महाकाव्य एवं खण्ड काव्य दोनों में ही रहती है परंतु खण्ड काव्य के कथासूत्र में जीवन की अनेकरुपता नहीं होती। इसलिए इसका कथानक कहानी की भाँति शीघ्रतापूर्वक अन्त की ओर जाता है। महाकाव्य प्रमुख कथा केसाथ अन्य अनेक प्रासंगिक कथायें भी जुड़ी रहती हैं इसलिए इसका कथानक उपन्यास की भाँति धीरे-धीरे फलागम की ओर अग्रसर होता है। खण्डाकाव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है।
सत्य की जीत खंडकाव्य महाभारत की एक कहानी में घटित घटना का चित्रण है
Explanation:
इस खंड काव्य की कहानी द्रोपदी के चीर हरण पर आधारित है यह कहानी महाभारत के खेल में सभा में जुए के खेल से संबंधित है इसमें दुर्योधन जुए की खेल के लिए पांडव को आमंत्रित करता हैपांडव उसके इस जूए खेल को खेलने के लिए दुर्योधन के निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं और इस खेल में लगातार पांडवों की हार होती है वह धीरे धीरे सब कुछ हार जाते हैं और बाद में द्रोपदी को भी दांव पर लगा देते हैं यह सब दुर्योधन की चाल थी और पांडव द्रोपदी को भी जुए की खेल में हार जाते हैं तभी दुर्योधन दुर्योधन दुशासन को आदेश देता है कि वह द्रोपदी को भरी सभा में लेकर आए और उसका वस्त्र का चीरहरण करें | द्रौपदी दुशासन को शेरनी की तरह ललकारती है और इसकी ललकारना से पूरी सभा स्तब्ध रह जाती है|