Hindi, asked by poojarajeshjindal, 9 days ago

सत्य के मार्ग विषय पर एक कथन लिखिए​

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Answered by Anonymous
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सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है; पूरा रास्ता ना तय करना, और इसकी शुरआत ही ना करना

Answered by pramodsah291
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मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है? इसके उत्तर में कह सकते हैं कि सत्य को जानना, समझना, उस पर गहनता से विचार करना, ऋषि दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों के जीवन चरितों व उपदेशों का अध्ययन करना, ईश्वर, जीवात्मा व प्रकृति का सत्य ज्ञान कराने वाले वेद एवं सत्यार्थाप्रकाशादि ग्रन्थों को प्राप्त करना व उनका अध्ययन करना, यह सब करके संसार व जीवन विषयक सत्य का निर्धारण करना और उसका पालन करना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्रतीत होता है। एक वैदिक प्रार्थना बहुत प्रचलित है ’असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माऽमृतम् गमय’। इसमें कहा गया है कि ‘हे सृष्टि बनाने, चलाने व इसकी प्रलय करने वाले परमात्मन् ! आप सत्य व असत्य को जानते हैं। आप हमें असत्य से हटा कर सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा करें। मैं असत्य का आचरण न करूं और जीवन में सदैव सत्य का ही आचरण करूं, सदा सत्य व प्रकाश के मार्ग पर ही चलूं और जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाऊं।’ इस वैदिक प्रार्थना में जो कुछ कहा गया है, उससे कोई भी मनुष्य असहमत नहीं हो सकता। एक अन्य प्रार्थना जो देश का ध्येय वाक्य भी कह सकते हैं, वह है ‘सत्यमेव जयते’। इसका अर्थ है कि सत्य की ही सदा विजय होती है। सत्य कभी पराजित नहीं होता। अतः जिसकी सदा विजय हो और जो कभी पराजय को प्राप्त न हो, उसी को हमें मानना चाहिये व आचरण में लाना चाहिये।

जब हम अपने प्राचीन ऋषि-मुनि व विद्वानों के जीवनों पर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि उनका जीवन सत्य को जानने व उसके आचरण को ही समर्पित था। वह पर्वतों की कन्दराओं, घने वनों में स्थित आश्रमों व कुटियायें बना कर वहां तप की साधना करते थे। तप का अर्थ ही सत्य को जानना व उसका आचरण करना होता है। सत्य अर्थात् ईश्वर के सत्य गुण, कर्म व स्वभाव को जानकर उनका उसके अनुरूप स्तुति व स्तवन करना ही ईश्वर की पूजा कहलाता है। विश्व विख्यात ऋषि दयानन्द जी ने लिखा है कि स्तुति का अर्थ स्तोत्य वस्तु के सत्य गुणों को जानकर उसका वर्णन करना होता है। ईश्वर की स्तुति की बात करें तो इसके गुणों सत्य, चित्त, आनन्द, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, निरभिमानी, पवित्र, धार्मिक, पक्षपात रहित होकर न्याय करने वाला, अनादि, नित्य, अमर, अविनाशी, अजन्मा, सृष्टि को बनाने, चलाने, पालन करने व प्रलय करने वाला, सब जीवों को उनके कर्मों का फल देने वाला, जीवात्माओं को जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म देने वाला, अजर, अभय आदि गुणों का उच्चारण व प्रशंसा कर अपने गुणों को भी इसके अनुसार बनाना होता है। ईश्वर व अपने से बड़ों की स्तुति करने से अहंकार का नाश होता है। अहंकार का नाश परमावश्यक भी है। अहंकारी मनुष्य का नाश हो जाता है। रावण व दुर्योधन के उदाहरण हमारे सामने हैं। ईश्वर व किसी महापुरुष सत्य व यथार्थ स्तुति हमें नाश से बचाती है। किसी के प्रति नत-मस्तक होने से अहंकार दूर हो जाता है। उसके प्रति श्रद्धा व आदर की भावना उत्पन्न होती है। ईश्वर सबसे महान व सर्वोत्तम सत्ता है जिससे संसार के सभी मनुष्य व प्राणी लाभान्वित हैं। अतः सबको ईश्वर व परोपकारी, स्वार्थशून्य, चरित्रवान महात्माओं की स्तुति करनी चाहिये। महापुरुषों के जीवन में अधिकांश ईश्वर के समान व उसके जैसे न्यूनाधिक गुण होते हैं जिससे संसार के सभी लोग, कोई किसी भी मत का अनुयायी क्यों न हो, उन महापुरुषों का मत-पन्थ की संकीर्ण मान्यताओं से ऊपर उठकर उनका सम्मान करते हैं। यही कारण है कि लाखों व हजारों वर्ष बीत जाने पर भी श्री राम, श्री कृष्ण, चाणक्य, युधिष्ठिर सहित अर्वाचीन लोगों में महर्षि दयानन्द, योगी अरविन्द, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, शहीद भगत सिंह आदि को आज भी लोग सम्मान देते हैं और उन्हें याद करते हैं। देश के लिए शहीद सेना के जवानों के प्रति भी लोगों का हृदय भावुक होकर अश्रुधारा बहाने लगता है। इसका उदाहरण है कि आज से 65 वर्ष पहले गाया गया गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’ आज भी लोकप्रिय है। इसे सुन कर सभी देश भक्तों की आंखे नम हो जाती है। इस गीत में सत्य की शक्ति ही, देश के लिए बलिदान की भावना जिसका पर्याय है, छुपी हुई है जो हमें आकर्षित करती है व अपनी ओर खींचती है।

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